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महाकइपुप्फयंतविरपर महापुराणु
हीणेण दीणेण विद्धत्यधम्मेण सढकमढदढकढिणभुयदंडतुलिएण 18 थरहरिय महि सयल धरणिंदु णीसरिउ धत्ता - पोमावइयाइ देविइ मणिविष्फुरियउं । ससिबिंबसमाणु कुलिसछत्तु तहु धरियउं ॥23॥
( 24 )
आऊरिउ देवें सुक्कझाणु
संदरिसिउ रिउ सामत्यु भग्गु पढमिल्लमासतमकरणपक्खि' केवलि पुज्जित सुरपुंगमेहिं सम्मन्तु लइउ खलसंवरेण तव्वणवासिहिं संपत्त वत्त दह गणहर सवणसयंभुआइ सिक्खुबह "ससिक्ख णवसयाई
घत्ता - केवलिहिं सहासु तेत्तिय
देवस्स किं कीरए पाववम्मेण । पुणरवि सिलालेण सेलेण बलिएण " । फणिफणकडप्पेण परमेट्ठि परिवरिउ ।
उप्पा केवल दिवाणु । दुम्मोहें सहुं णिज्जिउ अणंगु । पडिवयदिणि पवरविसाहरिक्खि । इच्छियमोक्खालय संगमेहिं" । उवसंतें ववगयमच्छरेण । इसि जायडं तवसिहिं सयई सत्त । तिसवई पण्णस जि पुव्ववाइ' । साबहिहिं ताइं चउदह गयाई । विक्किरियायर ।
[ 94.23.15
भयस्य पण्णास मुणिवर मणपज्जवधर ॥24॥
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HP सटकमठ | 19. AP चलिएण ।
( 24 ) 1. AP पढमिले मासे 2. AP चउत्पए दिणे 3. 4 सीखालय 4. P पुव्यह। 5. AP दससहसई जवसयाई। 6. 4 सवाई।
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विध्वस्तधर्म, पापकर्मी के द्वारा देव का क्या बिगाड़ किया जा सकता है ? फिर भी, धूर्त कमठ के दृढ़ और कठोर भुजदण्ड के द्वारा उठाये गये शिलातल और झुके हुए सैल (पर्वत) से सारी धरती काँप उठी । धरणेन्द्र बाहर निकल आया। उसने फनों के समूह से परमेष्ठी को आच्छादित कर लिया।
घत्ता और पद्मावती देवी ने मणियों से चमकता हुआ चन्द्रबिम्ब के समान वज्रछत्र उनके ऊपर रख
दिया ।
( 24 )
देव ने शुक्ल ध्यान पूरा किया। उन्हें दिव्यज्ञान केवलज्ञान उत्पन्न हुआ । शत्रु दिखाई दे गया, उसकी सामर्थ्य नष्ट हो गयी । दुर्मोह के साथ कामदेव जीत लिया गया । चैत्र माह के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा के दिन प्रवर विशाखा नक्षत्र में, मोक्षालय के संगम की इच्छा रखनेवाले सुरश्रेष्ठों ने केवली की पूजा की। दुष्ट संबर ने भी सम्यक्त्व ग्रहण किया-उपशान्त और ईर्ष्या से रहित होकर उस वन में निवास करनेवाले सात सौ मुनियों तक यह वार्ता पहुँची। वे भी जैन मुनि हो गये । श्रमण स्वयम्भू आदि उनके दस गणधर थे। पूर्ववादी मुनि साढ़े तीन सौ थे। शशि आदि शिक्षक मुनि नौ सौ अवधिज्ञानी चौदह सौ थे ।
घत्ता - केवलज्ञानी एक हजार, और एक हजार ही विक्रिया ऋद्धि के धारक तथा साढ़े सात सौ मन:पर्ययज्ञान के धारी मुनि थे ।