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94.23.14]
महाकपुप्फयंतविरयउ महापुराणु
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कयपंचचोज्जाइ सुद्धाइ 'चज्जाइ छम्मत्थकालेण चत्तारि मासाई दिक्खावणे पावरासीविणासेण' दित्संगसत्तम्मि सत्ताहमेरम्मि जोईसरो सुक्कझाणासिओ जत्थ ता तस्स मरुमग्गमग्गम्भि दुरियल्लि ता तेण रूसेवि सहसा भयंधेण तडिबडणरवफुडियमहिदसदिसासेहिं " णीलेहिं हरगलतमालाहदेहेहिं गयणयलु धरणियलु जलु धलु वि जलभरिउ
तहिं बंभराएण' दिण्णाइ भिक्खाइ । गलियाई चित्तंतरुत्तिष्णदोसाई* । जाइवि थिओ सामि अट्ठोववासेण । णवदेवदारुयलि गुरुयरवियारम्मि' । गयागंगणे संवरें जोइयं तत्थ । संचलइ ण विमाणु जिणणाहउवरिल्लि । संभरि चिरजम्मु बइरानुबंचेण" । आहंडलुद्दंडकोदंडभूसेहिं | गज्जतवरिसंतभी मेहिं मेहेहिं ।
विहडिउ ण पासस्स पिसुणेण थिरु चडिउ | "भंगुरियभालेहिं दाढाकरालेहिं । किलिकिलिकिलतेहिं खयकालवेसेहिं । रिछेहि सरहेहिं सीहेहिं वग्घेहिं । कणएहिं कुतेहिं करवालसूलेहिं" ।
पुणरवि रिसी रुद्ध मुहघित्तजाले हिं पिंगुद्धकेसेहिं मुक्कट्टहासेहिं”
ण णु भणतेहिं वेयाल संघेहिं वावल्लभल्लेहिं झसभिंडिमालेहिं
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वहाँ पर ब्रह्मराजा के द्वारा दी गयी भिक्षा से पाँच आश्चर्य प्रकट हुए। फिर, छद्मस्थकाल में उनके चार माह बीत गये और वे अपने मन के दोषों को पार कर गये। फिर, स्वामी दीक्षावन में जाकर पापों का नाश करनेवाले आठ उपवास ग्रहण कर स्थित हो गये। दीप्त अंगोंवाले प्राणियों से युक्त उस वन में सात दिन की मर्यादा लेकर नव देवदार वृक्ष के नीचे, जहाँ वह योगीश्वर गुरुतर विचारवाले शुक्लध्यान में लीन थे, आकाशमार्ग से संवरदेव ने वहीं देखा। तब कठिन आकाशमार्ग में जिननाथ के ऊपर उसका विमान नहीं चला। उस मदान्ध ने सहसा क्रुद्ध होकर पैर के अनुबन्ध से अपने पूर्वजन्म की याद की। उसने, बिजली के गिरने के शब्द से मही तथा दसों दिशाओं को विदीर्ण करनेवाले, इन्द्र के उद्दण्ड धनुषों से भूषित, काले हरकल और तमाल के समान शरीरवाले, गरजने और बरसने के कारण भयंकर मेघों से आकाशतल, धरतीतल सब कुछ जल से भर दिया। लेकिन वह दुष्ट, पार्श्वनाथ का चढ़ा हुआ स्थिर ध्यान खण्डित नहीं कर सका। फिर भी, उसने मुँह से छोड़ी गयी ज्वालाओं तथा दृढ़ कराल भंगुरित भालों, पीले उड़ते हुए केशों, मुक्त अट्टहासों, किलकिल करते हुए क्षयकाल के रूपों, मारो मारो कह रहे बेताल-समूहों, रीछों, शरभों, सिंहों, बाघों, बाबल्ल भालों, झस, भिन्दिमालों, कनकों, कुन्तों, तलवारों, सूलों से मुनि का अवरोध किया। उस दीन-हीन
(23) 1. AP सत्याए । 2. AP धण्णरागुण। 9 A "तरुणिगण्णदोसाई 4 A पायरासी । 5. AP जोए थिओ। . A "देवदारुवणे । 7. AP अयरवरम्भिB AP संवरो जाड़ जा तत्य प्र. १ वइराणबंधेण 10. AP कुरिच । Lt. A 'तमालालिदेहेहिं । 12. AP चरित्र 13. AP पुणुरधि । 14. A भंगरच" 15. Pट्टहासह 16. Padds णिम्मंसजंचेहिं after मणतेहिं । 17. AP add after this दिन सप्त उवसग्गु किउ कूरकम्मेण (A कूरकम्पेहिं) ।