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________________ 286] [94.22.1 महाकइपुप्फयंतविरयऊ महापुराणु (22) दूएण भणिउं जय तित्थणाह जय सामिसाल 'वयसलिलवाह। तुह पय पणवइ जयसेणराउ पई जेहउ होतउ भरहताउ। चिरु एवहिं तु जय उग्गवंस धयवडभडवंदियरायहंस। ता पुज्जिवि मंतिवि मुक्कु तुरिउ देवें णियहियवइ चरिउं सरिउं। हउं आसि कालि गयवरू अणज्ज एवहिं जायउ पुज्जहं मि पूज्ज। जिणतवसामत्थें दूसहेण दुज्जयपंचिंदियणिम्महेण। किज्जई तउ सिज्झइ जंण मोक्नु । ससारे ण दीसइ कि पि सोक्खु। इय चिंतवंतु कयभत्तिएहि पडिसंबोहिउ लोयंतिएहिं। पुणु पहाणिउ' पुज्जिउ सयमहेण । धरणें वरुणे ससिणा गहेण । विमलहि सिवियहि आख्दु देउ आसंकिउ हिववइ भयरकेउ। सियपक्खि पूसि एयारसीहि पुबण्हइ पवरुत्तरदिसीहि । थाएप्पिणु णामें10 समुहेण छणयंदरुंदमंडलमुहेण। आसस्थवर्णतरि लइय दिक्ख अट्ठमउववासें परम सिक्ख। पत्ता-ओलवियपाणि जोयायारें तिक्खहि। पइसइ परमेट्ठि गुम्मखेडु पुरु भिक्खहि ॥22॥ ( 22 ) दूत ने कहा- "हे तीर्थनाथ ! आपकी जय हो, व्रतरूपी जल के प्रवाह हे स्वामिश्रेष्ठ ! आपकी जय हो। राजा जयसेन आपके चरणों में प्रणाम करता है। तम्हारे जैसे पहले भरत चाचा थे। इस समय तम हो। हे उग्रवंश ! ध्वजपटों और भटों के द्वारा वन्दित राजश्रेष्ठ आपकी जय हो।" सत्कार कर और मन्त्रणा कर, उन्होंने दूत को तुरन्त मुक्त कर दिया। देव को अपने मन में अपना पूर्वचरित्र स्मरण हो आया। मैं पूर्वभव में एक भयंकर हाथी था। इस समय पूज्यों में पूज्य हो गया हूँ। दुर्जय पाँच इन्द्रियों का नाश करनेवाली असह्य जिनतप की सामर्थ्य से तप किया जाए, जिससे मोक्ष सिद्ध हो। संसार में कोई सुख दिखाई नहीं देता। यह विचार करते हुए भक्ति करनेवाले लौकांतिक देवों ने आकर उन्हें प्रतिसम्बोधित किया। फिर इन्द्र, धरणेन्द्र, वरुण और चन्द्रग्रह ने उनका अभिषेक और पूजा की। देव पवित्र शिविका (पालकी) में बैठ गये। कामदेव अपने मन में आशंकित हो उठा। पूस माह के कृष्णपक्ष की एकादशी के पूर्वार्द्ध में प्रवर उत्तरानक्षत्र में, पूर्णचन्द्र के समान सुन्दरमुखवाले उन्होंने सम्मुख स्थित होकर, अश्ववन के भीतर दीक्षा ग्रहण कर ली और आठ उपवासवाली परम शिक्षा ली। ___घत्ता–योगाकार मुद्रा में हाथ ऊपर किये हुए तीव्र भूख के कारण परमेष्ठी गुल्मखेड़ नगर में प्रवेश करते हैं-भिक्षा के लिए। जय तुएं। 4. A अपुज्जु। 1. A विज्जा तर सिजह । 6. A कयसतिएहि। 7. P हाइउ। 8. (22) 1. AP दयतालल'। 2. A भरहरा। 3. AP अंधारे पूले। 9. A अवरुत्तर। 10. AP णा।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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