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________________ 82.8.16] महाकाइपुप्फयंतविरय महापुराणु [ 27 सोहम्मसग्गि सोहग्गजुर चित्तंगउ णामें अमरु हुआ। काले जंतें एत्थु जि भरहि देसम्मि सुरम्मइ सुहणिवहि। पोयणपुरि सुत्थियपस्थिवहु' तिक्खासिपरज्जियपरणिवहु । सिसु जायउ गदिम सुलक्खाह सुपइटु णामु सुवियखणाहे । पाउसि गड कत्थइ कालगिरि- तहिं दिट्ठा बेण्णि भिडंत हरि। हा मई मि आसि इय जुज्झियउँ कइदंसणि णियभवु बुज्झियउ। आसंधिउ सूरि सुधम्मु सई इय एहउँ जिणतयु चिण्णु मई। इयरु वि संसारइ संसरिवि पुणु आयउ बहुदुक्खई सहिवि। सिंधूतीरइ घणवणगुहिलि णवकुसुमरेणुपरिमलबहलि । तावसिहि विसालहि हरगणहु तवसिहि सिसु हूउ मृगायणहु । पंचग्गितावतवधंसण' हुउ जोइसदेउ सुदंसणउ। हउं सूरदत्तु चिरु वाणियउ इहु सो सुदत्तु मई जाणियउ। उवसग्गु करइ णियकम्मवसु ण मुणइ परमागमणाणरसु।। संसारि ण को मोहेण जिउ तं सुणिवि सुदंसणु धम्मि थिउ । घत्ता-तं णिसुणिवि' पणवेप्पिणु सिरि करजुयलु थवेप्पिणु। "अंधकविढेि जिणवरु पुच्छिउ णिययभवंतरु० ॥8॥ 10 15 वह सौधर्म स्वर्ग में सौभाग्य से युक्त चित्रांगद नाम का देव हुआ। समय बीतने पर इसी भरतक्षेत्र के सुरम्य देश के सुख से परिपूर्ण पोदनपुर नगर में; अपनी पैनी तलवार से शत्रुसमूह को पराजित करनेवाले राजा सुस्थित की पत्नी विलक्षण सुलक्षणा से सुप्रतिष्ठ नाम का पुत्र हुआ। वर्षाकाल में वह किसी क्रीडापर्वत पर गया हुआ था। वहाँ उसने दो वानरों को युद्ध करते हुए देखा। हाय, मैंने भी यहाँ युद्ध किया था; कपि के दर्शन से उसे पूर्वजन्म का स्मरण हो आया। (तब) मैं सुधर्मा मुनि की शरण में पहुँचा और मैंने यह जिनधर्म स्वीकार कर लिया। दूसरा (मेरा भाई सुदत्त) संसार में भ्रमण कर और अनेक दुःख सहनकर, सधन वन में गहर तथा नवकुसुम रेणु की परिमल से प्रचुर सिन्धुतट पर शिवगण के तपस्वी मृगायण की पत्नी विशाला तपस्विनी से पुत्र के रूप में उत्पन्न हुआ। पंचाग्नितप के ताप से ध्वस्त होकर सुदर्शन नाम का (मैं) ज्योतिषी देव हुआ। मैं प्राचीन सूरदत्त वणिक् हूँ और यह वही सुदत्त है, मैंने जान लिया है। अपने कर्म के वशीभूत होकर वह उपसर्ग करता है। वह परमागम के ज्ञानरस को कुछ नहीं समझता। संसार में मोह से कौन नहीं जीता जाता।" यह सुनकर सुदर्शन धर्म में स्थित हो गया। ___घत्ता-यह सुनकर और सिर पर कर-युगल रख कर, प्रणाम कर अन्धकवृष्णि ने मुनिवर से अपने जन्मातर पूछे। (8) 1. B सुत्थिर। 2. B कालिगिरि। 3. APS बहुयारउ उपज्जियि मरियि; but K adds ap: बहुयारउ उप्पणिवि मरियि इति ताडपत्रे in second hand. 4. B "गुहलि । 5. 5 "बहुले । 6. B मिगयणहो । विगायणहो। 2..AP तावतणु,सणउ । R. B तं णिसुंणेपिणु सिरि। 9. AP "विट्रिहि। 10. B णियइ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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