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महाकइपुप्फयंतचिरपउ महापुराणु
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( 19 ) घरचूडामणिविलिहियगयणं
माणिणिघणधणविलसियमयणं । विहलियणरदुहहरधणपवर अइऊणं हरिणा तं णयरं। बंभादेविइ दिण्णो ईसो
देवो पासो सो णिद्दोसो। अहिणवणवरसभावविसट्ट सुरवरणाहो काउं पढें। संतं दंतं भुवणमहतं
पुणु णमिऊण दुरियकयंत। मधओ समरो सरासिरामग सगओ विगओ सक्को सग्गं | सुण्णपंचभयगुत्तिवसूर्ण
वासाणं माणेण गुरूणं। पत्ताणं परमं णिव्वाणं
वोलीणाणं णेमिजिणाणं। तक्कालासियवरिससयाऊ रूवरिद्धिणिज्जियझसकेऊ। वणेणुज्जलमरगयसामो विलियराओ उज्झियवामो'। देहेणुण्णवणवकरमाणो
वइरिणि मित्ते णिच्चसमाणो। सपसमपसरणुपसमियमारो' पुटैि पत्तो पासकुमारो। पायपोमपाडियसुरराओ
सोलहवारिसिओ सिंजाओ। तिवसवरेहिं सम' कीलतो __एक्कस्सि दिवसे विहरतो।
(19) जिनके गृहशिखरों से आकाश स्पृष्ट है, जिनमें मानिनी स्त्रियों के सघन स्तनों से कामदेव विलसित हैं और जो निर्धन मनुष्यों के दुःखों को हरण करनेवाले धन से प्रचुर है, ऐसे उस नगर (वाराणसी) में आकर, इन्द्र ने उन निर्दोष देव पार्श्व को ब्रह्मादेवी के लिए दे दिया। सुरवरनाथ (इन्द्र) अभिनव नवरस और भाव से परिपूर्ण नृत्य कर और शान्त-दान्त मुवन में महान् पापों के लिए कृतान्त उन्हें पुनः नमस्कार कर, अपने ध्वजों और देवों के साथ जिसका मार्ग श्रुत के आश्रित है, ऐसे स्वर्ग के लिए स्वयं चला गया। नेमिनाथ के निर्वाण प्राप्त कर लेने पर, तेरासी हजार सात सौ पचास वर्षों के मान का समय बीतने पर पार्श्वनाथ हुए थे। इसी काल में सन्निहित उनकी आयु सौ साल की थी। वह अपनी रूप-ऋद्धि से कामदेव को जीतनेवाले थे। रंग में वह उज्ज्वल मरकत की तरह श्याम थे-विगलित राग और काम से शून्य । नौ हाथ ऊँचा उनका शरीर था। शत्रु और मित्र में नित्य समानभाव रखते थे। अपने प्रशमभाव के प्रसार से उन्होंने कामदेव को शान्त कर दिया था। पार्श्व कुमार वृद्धि को प्राप्त हुए। इन्द्र को अपने चरणों में झुकानेवाले वे सोलह वर्ष के हो गये। एक दिन वे देवों के साथ खेलते हुए विहार कर रहे थे।
5. AP पासू जि भणेधि।
(19) 1. AP जणदुह । 2. AP सुमरियमगं। RAP मुनु। 4. AP उझियकापी। 5. A उबसमपसरण। B. AP डिं। 7. AP सम।