SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 284
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 15 282 ] महाकइपुष्फयंतविरयउ महापुराणु [94.17.14 छत्ता-अहवा" सयल थुणंत पणवह पय जिणरायहु" । गिण्हह जण्णविहाउ पुण्णकलस उच्चायहु ॥17॥ (18 सव्वदोसवज्जिओ सब्बदेयपुज्जिओ। सव्ववाइदूसणो सव्वलोयभूसणो। सव्वकम्मणासणो सव्यदिविसासणो। भव्यपोमणेसरो ण्हाणिओ जिणेसरो। तावभावहारिणा सीयखीरवारिणा। कुंकुमेण पिंजर सित्तसाणुकुंजरं। वितरेहिं सेवियं भावणेहिं भावियं। जोइसेहिं दियं कप्पवासिबंदियं। खेयरेहिं इच्छियं सीसए पडिच्छियं। चारणेहिं मणियं जक्खिणीहिं वणियं। पक्खिणीहिं माणियं जाव पहाणवाणियं। देवदारुवासियं चंदवंतभासियं। मंदरस्स कंदरे दुच्चरम्मि कक्करे। किंणरीण संतिय धोयवत्तपत्तिय । पत्ता-सिंचिवि अचिवि थुइवयणहिं संभासिउ। पहु पासविणासु पासु भणेवि पयासिउ ॥18॥ घत्ता-अथवा आप सब लोग स्तुति करते हुए, जिनराज के चरणों में प्रणाम करें। यज्ञ-विभाग (पूजा-सामग्री) को ग्रहण करें और पुण्य-कलश उठा लें। ( Is ) सभी दोषों से रहित, सब देवों से पूजित, सभी मिथ्यावादियों के दूषण, सर्वलोकभूषण, समस्त कर्मों को नाश करनेवाले, सभी दृष्टियों का शासन करनेवाले, भव्यरूपी कमलों के लिए सूर्य के समान और सन्तापभाव का हरण करनेवाले जिनेश्वर का शीतल क्षीरजल से अभिषेक किया गया। इस बीच, स्नान का जल, जो कि केशर से पीला था, जिसने तटस्थ गजों को अभिषिक्त किया था, व्यंतरों से सेवित, भवनवासियों से भावित, ज्योतिषदेवों से नन्दित, कल्पवासियों से वन्दित, विद्याधरों से अभिलषित शिष्यों से इच्छित चारणों के द्वारा मान्य, यक्षिणियों के द्वारा वर्णनीय, पक्षिणियों के द्वारा मान्य, देवदारु वृक्षों से सुवासित और चन्द्रमा की कान्ति के समान भास्वर था, वह मन्दराचल की अगम्य कठोर गुफा में किन्नरियों के मुखों की पत्ररचना को धोनेवाला था। __ पत्ता-इस प्रकार अभिषेक कर, पूजा कर, स्तुतिवचनों से सम्भाषण किया और प्रभु को 'पाप का नाश करनेवाला पार्श्व' कहकर प्रकाशित किया (उनका नाम पार्श्व रखा)। 18. AP आवह। 19. AP "रायहो। 20. AP उच्चायहो। (18) A सब्बपोम-12-AP हाइओ। 9. AP डाइ। 4. A केयपत्तचिव धोयपत्नपतियं ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy