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________________ 94.17.13] [281 महाकइपुष्कयंतविरयउ महापुराणु घत्ता-इय बहुणामाहिँ सुरवरणारिहिं सेविउ। संचल्लिउ इंदु भणु किर केण ण भाविउ ॥16॥ (17) पवणुद्धयाणेयविहवण्णचिंधेहि उद्धरियउन्लोवसेयायवत्तेहिं गंधव्वगिजंतमंगलणिणाएहिं कारंडभेरंडमणहरमऊरेहि संचलिवचलधवलचामरविलासेहि गंतूण वाणारसिं ते पुरं तेण मायाइ मायासिसु झत्ति दाऊण चंदक्कधामाहिं उद्धं चरंतेण सक्केण अहिसेयजोगम्मि दिव्वम्मि सियसलिलधाराहि गुरुमंतगुरुएण पत्ताई भरिऊण भणियं 'चउद्दिसह हे इंद सिहि काल हे णेरिदीराय हे हे कुबेरंक ईसाण धरणिंद महिपित्तकुसुमंजलीसुरहिगंधेहिं। अच्छरकरुक्खित्तकल्लाणवत्तेहिं । दिसिविदिसिदीसंतचउसुरणिकाएहिं। णाणाविमाणेहिं विरसंततूरेहि। बंदारयाणंदकयमंदघोसेहि। गयवाह जय णाह जय जिण भणतेण। देवो जिणिंदो णियंकम्मि काऊण। सिग्घं णिओ मंदरं पुण्णवंतेण। णिहिओ सिलावीढसीहासणग्गम्मि। गंधेण पुप्फेण दिव्येण चरुएण। जिणण्हवणकालम्मि एत्थेत्य उवविसह। हे वरुण "हयमरण 'चलगवण हे वाय। रुइसेंद हे चंद हे सूर साणंद। 10 घत्ता-इस प्रकार अनेक नामवाली देवांगनाओं द्वारा सेवित वह (इन्द्र) चला। बताओ चन्द्रमा किसे अच्छा नहीं लगता ? ( 17 ) हवा में उड़ते हुए अनेक प्रकार के रंगों के ध्वजों, धरती पर गिरी हुई कुसमाजलियों की सुरभिगन्धों, धारण किये हुए चन्दतुल्य श्वेत आतपत्रों, अप्सराओं के हाथों से छोड़े गये मंगलद्रव्यों, गन्धर्वो के द्वारा गाये मंगलनिनादों, दिशा-विदिशा में दिखाई देते हुए चार प्रकार के देव-निकायों, चक्रवाक-भेरुण्ड-सुन्दर मयूरों, अनेक विमानों, बजते हुए तूर्यो, चलते हुए चंचल धवल चमरों के विलासों और देवों के द्वारा आनन्द में किये गये उद्घोषों के साथ वाराणसी नगरी में जाकर बाधा रहित 'हे नाथ ! जय हो हे जिन ! जय हो' कहते हुए, उसने माता के लिए माया शिशु शीघ्र देकर, जिनेन्द्रदेव को अपनी गोद में रखकर, चन्द्र और सूर्य के स्थानों से ऊपर जाता हुआ पुण्यवन्त इन्द्र उन्हें शीघ्र सुमेरु पर्वत पर ले गया। इन्द्र ने उन्हें अभिषेक के योग्य दिव्य शिलापीठ के सिंहासन के अग्रभाग पर विराजमान कर दिया। उसने कहा-श्वेतसलिल धारा, गुरुमन्त्र से गुरु, गन्ध, पुष्प, दिव्य और नैवेद्य से पात्रों को भरकर, जिनवर के अभिषेक के समय, हे कुबेरांक ! ईशान, धरणेन्द्र, कान्ति से सुन्दर चन्द्र, हे सानन्दं सूर्य ! आप लोग चारों दिशाओं में यहाँ. यहाँ बैठ जाएँ। (17) 1. APणेयबहुप | 2. A मडुपित्त' । 3. AP कलाणवत्तेहिं । 4. AP "भेरुंड15. A *कययंद" । 6. A गंतूण तं वाणरासिं पुरं तेण: गंतूण तं वाणरसि ते पुरि तेण। 7. AP मायासिसू। .A णिय कम्म काउण। 9. A यंदमयम्मेहि। 10. AP "जोगम्मि लग्गम्मि। II. AP °गरुराण। 12. P भणिऊण। 19. A भमिय। 14. AP च दिहि दिसह। 15. AP हयणयालमि।.1. हयमरुण। 17. AP चलगमण।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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