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94.15.14]
महाकइपुप्फयंतविरपर महापुराणु
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तओ तेण उत्तं सुबत्ते पवित् आ तुज्झ होहो गियंदों जिणंदो मए भासिय लोयसारं विसुद्धे तओ तम्मि वइसाहमासम्मि आए विसाक्खरिक्खे तमिल्लीविरामे मउम्मत्तमायंगलीलागईए अलं कतिकित्तीहिं संसोहियंगे इंदस्स रूवेण देवाहिदेवो सुरिंदेहिं चदेहिं संधुव्यमाणो दहव पक्खा मही दिण्णदिट्ठी' पुणो कालपक्खे पतम्मि सीए थिए दिम्मु णीरए णिवियारे
हले वच्छले बालसारंगणेत्ते । खगाहिंदभूमिंददेविंदवंदो । इमं दंसणाणं फलं जाण मुद्धे । दुइज्जे दिणे कण्हपक्खस्स जाए। पियालावलीलारसुप्पण्णकामे । सिरीए हिरीए दिहीए मईए । थिओ गब्भवासे महापुण्णसंगे । अतावी असावी अगाओ अलेवो । तिलोयं तिणाणेहिं संजाणमाणो । कया जक्खराएण माणिक्कविट्ठी । हुआ पूसमासम्मि एयारसीए । बरे वाउजोए जणानंदसारे" । सुरवरपायव ।
धत्ता- उप्पण्णइ णाहि कंपिय णाणाकप्पे संजाया घंटारव ॥15॥
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यह सुनकर वह बोले - हे सुन्दर वृत्तान्तवाली, पवित्र वत्सले ! बाल हरिण के समान आँखोंवाली ! तुम्हारा पुत्र नरश्रेष्ठ जिनेन्द्र विद्याधरों, नागेन्द्रों, मनुष्येन्द्रों और देवेन्द्रों के द्वारा वन्द्य होगा। हे विशुद्ध मुग्धे ! मेरे द्वारा कहा गया स्वप्नदर्शनों का यह लोक श्रेष्ठ फल जानो। उसी समय वैशाख माह के आने पर कृष्णपक्ष की द्वितीया के दिन विशाखा नक्षत्र में, प्रियालाप और लीला रस से जिसमें काम उत्पन्न हो रहा है, रात्रि के ऐसे अन्तिम प्रहर में कोमल लेकिन मतवाले गज की लीला गतिवाली, श्री, ह्री, धृति, मति, समर्थ कान्ति और कीर्ति देवियों के द्वारा संशोधित अंगवाले, महापुण्य से युक्त, गर्भवास में गजेन्द्र के रूप में स्थित हो गये। वे देवाधिदेव जो ताप, शाप और रोग रहित, निर्मल, सुरेन्द्र और चन्द्र के द्वारा स्तूयमान, तीन ज्ञानों से त्रिलोक के मान को जाननेवाले हैं। अठारह पक्ष तक धरती भाग्यशाली थी, (क्योंकि) यक्षराज ने माणिक्यों की वृष्टि की थी। फिर, पूस माह आने पर कृष्णपक्ष की एकादशी के दिन जब दिशामुख निर्मल था, ऐसे निर्विकार जनानन्ददायक श्रेष्ठ विशाखा नक्षत्र में वह उत्पन्न हुए ।
धत्ता - स्वामी के उत्पन्न होने पर देवों के कल्पवृक्ष काँप उठे। नाना कल्पों में घण्टानाद होने लगा ।
( 15 ) 1K तिमलीविरामे but gloss रात्रिः । 2. A हिरीए मईबुद्धिईए P हिरीए विहीए मईए 3. A संजायमाणो 4. P दिज्जतुडी। 5. P छुट्टी 6. P णिब्वयारे। 7 AP जणादवारे 8. P सई जाया ।