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________________ 94.13.18] महाकइपुप्फयंतावेरवउ महापुराणु [277 ता 'वषिणयं तेण पुण्ण बुवाहेण सग्गाउ 'एहिति रूवेण रंभाइ भो पोमपत्तक्ख लद्धावलोयस्स एवं अवेरस्स चित्तम्मि मंतूण मंदाणिलालाई सग्गग्गलीलाई रयणंसुजालाई तोरणदलालाई पिहुपंगणालाई मणिमयकवाडाई पायडियकम्माई णयरांम्म काऊण बुट्टो सुवण्णेहि जक्खाहिवो ताम ( 13 ) पम्म णियंतेण। सोहम्मणाहेण। गब्भम्मि थाहिति। देवीइ बंभाई। तेवीसमो जक्ख। सामी तिलोयस्स। सिटुं' कुबेरस्स। ता तेण गंतूण। उज्जाणलीलाई। सालाविसालाई। हिंडियमरालाई। महुयररवालाई। सगवक्खजालाई। णहलग्गकूडाई। रम्माई हम्माई। पुण्णाई 'पाऊण। कणियारवण्णेहि। छम्मास गय जाम। (13) पुण्यरूपी जल के वाहक, उस सौधर्म्य स्वर्ग के इन्द्र ने अच्छी तरह देखते हुए जान लिया और अजातशत्रु कुबेर से कहा- "हे कमलपत्रनेत्र यक्ष ! प्राप्त किया है अवलोकन जिसने ऐसे त्रिलोक के स्वामी तेईसवें तीर्थंकर स्वर्ग से आएँगे और रूप में रम्भा के समान ब्रह्मादेवी के गर्भ में स्थित होंगे।" तब उसने अपने मन में विचारकर और जाकर नगर में वास्तुकर्म को प्रकट करनेवाले सुन्दर प्रासाद बनाये, जिनमें मन्दपवन के झोकोंवाली उद्यान क्रीड़ाएँ थीं, स्वर्ग की अग्रलीलाओं को धारण करनेवाली विशाल शालाएँ थीं, रत्नकिरणों की तरह उज्ज्वल घूमते हंस थे, तोरणदलों का समूह, मधुकरों के शब्दों का आलाप, विशाल प्रांगण, गवाक्षजालों से युक्त, मणिमय किवाड़ोंवाले और उनके शिखर आकाश को छूनेवाले थे। इस प्रकार प्रासाद बनाकर एवं पुण्य जानकर उसने कनेर के रंग के स्वर्णों की वर्षा की; तब तक कि जब तक छह माह बीत गये। (13)I.AP जाणियं। 2. A पुण्ण विवाहेण । 3. AP पेहिति । 4. Pomits this tootB.A पहु। 6.A रम्माई 17.P लाऊण। ५.P कणयार ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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