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महाकइपुष्फयंतविश्वर महापुराण तेहिं तेहिं वत्थुहिं भाविज्जइ जेहिं जेहिं सुहमइ उप्पज्जइ। चित्ताचेयई ताई अणेयइं जिणपडिबिंबमहारिसिभेयई। घत्ता-सुहकम्मरयाही "पावविविहवित्थारणु।
असुहम्मिहिं' होउ दब्बु णिबिणिकारणु ॥10॥
कारणाहु' जगु भरियउ अच्छइ झसरूवह सालूरसरुवह जिह विविहहं पाहाण्ह छित्तई संदपंचमंदरहं णियंबई भावणभवणई कप्पविमाणई जो वंदइ तहु पाउ पणासइ ता राएं णियहियवई भाविउं णाणाविहमाणिक्कहिं जडियउं छत्तत्तयसुरविडविपलंबहिं जोएप्पिणु गयणयलि दिगे। एहु जि मग्गु जगि जायउ रूढउ
णाणघंतु णाणेण णियच्छइ। उंदररूवह अस्थि बहूयह।। तिह अरइयजिणबिंबई चित्तई। ससिरविबिंबई करणिउलंबई। अकयजिणाहिवपडिमाठाणई। . एव भडारउ गणहरु भासइ। भाणुबिंबु पुरवरि काराविउ । णं गवणाउ तं जि सई पडियउं । सहियउं मणिमयजिणपडिबिंबहि। मयुधाइ साझ परेसका पत्धिवचरियाणुउ जणु मूढउ।
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चाहिए जिनसे शुभबुद्धि पैदा होती हो। जिनप्रतिबिम्ब और महामुनियों के भेद से चेतन-अचेतन बहुत-से कारण हैं। ____घत्ता-शुभ कर्म करनेवालों के लिए इस प्रकार द्रव्य का बहुविध विस्तार होता है। अशुभ कर्म करनेवालों के लिए द्रव्य (रूप) स्त्रीबन्ध का कारण होता है।
कारणों से यह संसार भरा हुआ है। झानी ज्ञान से उसे देख लेता है। मत्स्यरूप, मेंढकरूप, चूहारूप, आदि बहुरूपों के पत्थर, क्षेत्र आदि कारण है, उसी प्रकार अरहन्त जिन की विचित्र मूर्तियाँ कारण हैं। पाँच सुमेरु पर्वतों के नितम्ब, किरणों से सहित सूर्य-चन्द्र के बिम्ब भवनवासियों के विमान, कल्पविमान अकृत्रिम जिनवरों की प्रतिमा के स्थान हैं; इनकी जो वन्दना करता है उसका पाप नष्ट हो जाता है-ऐसा आदरणीय गणधर कहते हैं।" वह सुनकर राजा ने अपने मन में विचार किया कि मैं एक सूर्यबिम्ब का अपने नगर में निर्माण कराऊँगा। नाना प्रकार के मणियों से विजड़ित, जैसे सूर्य ही आकाश से स्वयं गिर पड़ा हो। तीन छत्रों, कल्पवृक्ष के पत्तों, मणिमय जिन प्रतिमाओं से सहित दिनेश्वर को आकाशतल में देखकर राजा ने उनका अर्ध उतारा। फिर, यह मार्ग जग में रूद हो गया। मूर्ख जन राजा के चरित्र का अनुगमन करते रहते हैं।
8. A चितियवेपई चिातेयचेयई। 9. A सुहकप्मारयाह । 10. A एवं बहुवित्धार एम विहवित्थागणु। 11. AP असुहाह कि होइ दनु ।
(11) I. A कारणाई। 2. AP उंदुर । 1. A पभूयह। 1. A उत्तहं । 5. A धुतह) i. A जियाहियएं। 7.A कराविउ। 6. 1. AP जाउ जगे