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पहिणार
महाकइपुष्फयंतविरयउ महापुराणु दीहु कालु मयमोहु हरेप्पिणु घोरवीरतवचरणु' चरेप्पिणु। जोउ लएप्पिणु सुयवणयरसरि थिरु थिउ हिमगिरिवरकुहरंतरि। कुक्कुडाहि धूमप्पहि णारउ पुणु पुणु हुउ बहुदुक्खह' भारउ । अजयरु तेण गिलिउ' सो जइवरु मुउ परमेसरु संजमभरधरु । अच्चुयकप्पि गुणोहरवण्णउ जाबउ देउ णिच्चु तारुण्णउ । यत्ता-तहिं तेण सुरेण दिव्यभोयसंजुत्तउं ।
बावीससमुद्दसमु परमाउसु भुतउं।।6।
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गयणविलंबियमणहरमेहइ पुणु इह दीवइ अवरविदेहइ। पउम्देसि आपरगी' पुस्कार टुग्गति रिउणयरखयंकरि'। वजवीरु णामें तहिं राणउ आहेडलससिसूरसमाण। विजयारावि तासु सीमंतिणि हावभावविब्भमजलवाहिणि। णिवसुहकम्मवसे सुच्छायउ तहि अच्चुयसुरु तणुरुहु जायउ। लक्खणवंजणचच्चियकायउ णामें वज्जणाहु' महिरायउ। असिवरधारइ सयल वि जित्ती छक्खंड वि तें मेइणि भुत्ती।
खेमकरु जिणणाहु णवेप्पिणु धम्मु अहिंसापरमु सुणेप्पिणु। मदमोह का हरण कर, घोर बीर तप का आचरण कर, योग लेकर वह, जिसमें वनचरों के शब्द सुनाई देते हैं ऐसी श्रेष्ठ हिमगिरि की एक गुफा में स्थित हो गया। कुक्कुड नाम का वह सर्प धूमप्रभा नरक में नारकी हुआ। फिर बहुत दुःखों को धारण करनेवाला अजगर हुआ और उसने संयम के भार को धारण करनेवाले उन परमेश्वर यतिवर को इस लिया। वह मृत्यु को प्राप्त हुए और अच्युत स्वर्ग में गुणसमूह से सुन्दर नित्य युवा देव हुए।
पत्ता-वहाँ उस देव ने दिव्यभोगों से संयुक्त बाईस समुद्रपर्यन्त परम आयु का भोग किया।
इसी जम्बूद्वीप में, जहाँ सुन्दर मेघ आकाश पर अवलम्बित रहते हैं, ऐसे अपरविदेह के पद्मदेश में शुभ करनेवाली अश्वपुरी है, दुर्गों से युक्त और शत्रुनगर का नाश करनेवाली। उसमें वज्रवीर्य नाम का राजा है---इन्द्र, सूर्य और शशि के समान । उसकी पत्नी विजयादेवी हावभाव और विभ्रमरूपी जल की नदी है। अपने शुभ कर्म के वश से सुन्दर कान्तिवाला वह अच्युत देव उन दोनों का पुत्र हुआ। लक्षणों और सूक्ष्म चिरनों से शोभित-शरीर वह वज्रनाभ नाम से महापति (राजा) हुआ। अपनी तलवार की धार से उसने समस्त धरती जीत ली और छह खण्ड धरती का उपभोग किया। फिर, क्षेमंकर नाम के जिन तीर्थंकर को नमस्कार कर,
&A हणेप्पिण। 1.AP घोस वसतव। 3.A पुरु पुण टुट; मुउ पुणु हु। . पूल दुक्खह। 7.A गि लि उ सो जयबम: P गिलिउ जोईसरु।
(7)1.A आउसरे। 2. P रिउणियर । . AP विजयादेवि। 4. AP वजणाहि।