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________________ 10 270 । पहाकइपुष्फयंतविस्यउ महापुराणु [94.5.4 पुव्यवइरसंबंधवियारहिं तिक्खणक्खखरचंचुपहारहि । तेण विहउ' करि बिलिउं सोणि णं गेरुयगिरिवरणइवाणिउँ । मुउ सुहझाणे सुरवरसारइ उप्पण्णउ सुकप्पि सहसारइ। अमरकोडिसेविउ' पवरामरु पविमलकडयमउडकुंडलधरु । सोलहजलहिपमाणचिराउसु माणिवि दिवणारिकीलारसु। जंवूदीवि' पवियलियतममलि पुवविदेहि विउलि खयरायलि। लोउत्तमु पुरु किं वर्णिणजइ सुरपुरेण जहिं हासउ दिज्जई। पत्ता-तहिं खयररिंदु इंदसमाणउ विज्जुगइ। ___ गेहिणि तडिमाल णाई अणंगहु मिलिय रइ ॥5॥ (6) एयहं बिहिं मि जणहे कीलतह लीलइ सुरयसोक्खु मुंजतह। चुउ सहसारदेउ सुउ जायउ रस्सिवेउ णामें विक्खायउ। सिरि अणुहुँजिवि कालें जंतें उप्पल पर जाणतें संतें। सूरि समाहिगुत्तु आसंघिउ । अइदुत्तरु भवसायरु घिउ'। वउ लइयां णिवसिरि परिसेसिवि थिज अप्पउं सीलेण विहूसिवि। के भार को धारण करनेवाला महामुनि हो ! लेकिन पूर्वजन्म के वैर सम्बन्ध के विकारोंवाले तीखे नखों और तीव्र चंचु-(दन्त-) प्रहार से उसने हाथी को काट खाया, उससे रक्त यह निकला। मानो गैरिक पर्वत की नदी का पानी हो। शुभध्यान से मरकर वह गज सुरवरश्रेष्ट सहस्रार स्वर्ग में उत्पन्न हुआ। करोड़ों देवों से शोभित तथा कटक, मुकुट और कुण्डलों को धारण करनेवाला वह दिव्यांगनाओं के साथ क्रीड़ा-रस मानकर, सोलह सागर प्रमाण की चिर आयुवाला महान् देव हुआ। जम्बूद्वीप के पूर्वविदेह में, नष्ट हो गया है तम-मल जिसमें, ऐसे विशाल विद्याधर-लोक में त्रिलोकोत्तम नगर है। उसका क्या वर्णन किया जाय, सुर-पुर के द्वारा जिसका मनोरंजन किया जाता है ! . घत्ता-वहाँ इन्द्र के समान विद्युतगति नाम का विद्याधर राजा है। उसकी तडिन्माला नाम की गृहिणी है मानो कामदेव के लिए रति मिल गयी हो। क्रीड़ा करते और लीलापूर्वक सुरति सुख भोगते हुए, इन दोनों के, वह सहस्रार देव च्युत होकर पुत्र उत्पन्न हुआ, जो रश्मियेग के नाम से विख्यात था। समय बीतने पर, श्री का भोग करने के अनन्तर, स्व-पर को जानते हुए, उसने समाधिगुप्त मुनि की शरण ली और अत्यन्त दुस्तर संसार-समुद्र लाँघा। राज्यश्री को छोड़कर उसने व्रत ग्रहण कर लिया, और स्वयं को शील से विभूषित कर स्थित हो गया। दीर्घ समय तक (5) 1. A णिहर। .Affगरिणिज्रपाणि: Pगिरिणिज्झरवाणिउं। 5A पर देउ तहिं पुणु सहसारए। 4. A विभियपरामरु। 5. A°दीवए विद्यालयतपायले। (6) 1. A लिंघिट । 2. D उ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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