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________________ 94.5.3] महाकइपुष्फयंतविरयउ महापुराणु [ 269 अप्पर खमदमभावें रंजड़ अवरुल्लूरिउ पल्लवु भुंजइ। पियइ सलिलु परकरिसंखोहिउं ण हणइ हरिणु वि जंतउ रोहिउ। किमिपिपील' लहुजीव णियच्छइ परपयमलिए 'मग् गच्छइ। कम्भुब्भडु सयियारु ण जोयइ गणियारिहिं करु कहिं मि ण ढोयइ। अंगें अंगु' समाणु ण पेल्लइ पाणिउं पंकु सरीरि ण पल्लइ। अट्टरउद्दझाणु विणिवायइ . जिणचरणारविंदु णिज्झायइ। रत्तिदियह उब्भुन्भउ अच्छा दसणणाणचरित्तई इच्छइ। पोसहविहिसंखीणसरीरउ सहइ परीसह सुरगिरिधीरउ। दूसहतण्हातावें लइयउ एक्कदिवसु" सो गउ अणुवइयऊ। वेयवइ त्ति जाम सरि पत्तउ ता तहिं दुइमि कद्दमि खुत्तउ । धत्ता-मई धिवहि सरीरि हउं तुह णेहणिबद्धउ। इय चिंतिवि णाइ मयगलु पंके रुद्धउ |4|| (5) सो खलु तावसु मरिवि वरावउ तेत्यु जि फणिकुक्कुडु संजायउ। जहिं गयवरगइ तहिं जि पराइउ काले कालवासु णं ढोइउ । दिवउ तेण हस्थि सो केहउ बयभरधरणु महामुणि जेहउ। 10 स्वयं को क्षमा और संयम से रंजित करता है। पत्ते तोड़कर खाता है। सैंड से संशोधित (प्रासुक) पानी पीता है। जाते हुए रोहित हरिण को नहीं मारता। कृमि, चिंटी आदि जीवों को देखकर चलता है। दसरों के पैरों से मलिन मार्ग को देखकर चलता है। विचारपूर्वक वह उद्भट कर्म नहीं करता। हथिनियों पर अपनी सैंड कभी भी नहीं ले जाता। एक अंग से दूसरे अंग को नहीं खुजलाता। पानी और कीचड़ शरीर पर नहीं डालता। वह आतं, रौद्र ध्यानों का नाश कर देता है और जिनवर के चरणकमलों का ध्यान करता है। रात-दिन अपनी सूंड़ ऊपर किये रहता है। वह दर्शन, ज्ञान और चारित्र की इच्छा करता है। प्रोषधोपवास की विधि से क्षीणशरीर, सुमेरु पर्वत की तरह धीर वह परीषह सहन करता है। एक बार असह्य प्यास से संतप्त होकर वह अणुव्रती गज ज्योंहि बेतवा नदी के भीतर पहुंचा त्योंहि उस दुर्दम कीचड़ में फँस गया। पत्ता-'तुम मुझे शरीर पर डालते हो, मैं तुम्हारे स्नेह से बँधी हुई हूँ'-यह विचार कर ही मानो कीचड़ ने उस मदमाते हाथी को रोक लिया था। ___ वह बेचारा दुष्ट तापस (कमठ) मरकर वहीं पर कुक्कुड साँप हुआ। और जहाँ गजवर की गति थी, वह वहाँ पहुँचा मानो काल अपना कालपाश ले आया हो। उसने उस हाथी को इस प्रकार देखा जैसे व्रत अंगु समय। 2. AP उल्लूरिय पजउ । 3. AP हरिण ण जंतु यि रोहिर। 4. AP पिप्पीलि। .. " पंथें। 6. A पेमु भेदु।. A अंगुलसमवणु, 8. A जिणवरचरणा' । 9. AP सहियपरीसहु। 10. A "दिवसे सो गय पाइय3 दिवसे गपदक पावइयर।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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