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________________ 82.6.15] महाकपुष्कयतविरच महापुराणु ( 6 ) हुउ ताहि गब्धि कुलभूसणउ पुणु दुद्दरिस दुम्भरिसणउ सज नई एवं ताइ जणिउं अण्णाहं दिणि सूरवीरु सिरिहि गउ वंदिउ 'सुप्पट्ठइअरुहु' अप्प णीसंगु णिरंबरउ णिसिदिवसपक्खमासेण हय ता सुप्पट्टरिसिदिहि हरइ तं दुहुं दूसहु साहु सहि ं उप्पण्णउं केवलु विमलु" किह "जायउं चउविहु " देवागमणु पुच्छिउ मरमेसरु परमपरु उवसग्गहु कारणु काई किर दुज्जोहणु पुणु दूसासणउ । पुणु अण्णु अण्णु हूयउ तणउ । जिणभासिउं सेणिय मई गणिउं । गिविण्णु गंधमायणगिरिहि । सुयजमलहु महियलु देवि पहु । जायउ मुणि कयमणसंवरउ । बारह संवच्छर जाम गय। उवसग्गु सुदंसणु सुरु करइ । आऊरिडं झाणु रोसरहिउ " । जाणि तेल्लोक्कु झड त्ति जिह 1 तहिं अंधयविट्ठिहि'" "मिउ जिणु । णाणाविहजम्मणमरणहरु 1 - ता जिणमुहाउ णीसरिय गिर । घत्ता - जंबूदीवइ" भारहि देसि " कलिंगि सुहावहि । आवणभवणणिरंतरि दिण्णकामि कंचीपुरि ॥6॥ [ 25 5 10 15 (6) उसके गर्भ से कुलभूषण दुर्योधन और दुःशासन उत्पन्न हुए, फिर दुदर्शन दुर्मर्षण, और फिर दूसरे पुत्र उत्पन्न हुए। इस प्रकार उसने सौ पुत्रों को जन्म दिया । "हे श्रणिक ! जिनदेव द्वारा कथित इस तथ्य को मैं जानता हूँ। दूसरे दिन शूरवीर (अन्धकवृष्णि के पिता) से विरक्त होकर गन्धमादनगिरि पर गया । वहाँ सुप्रतिष्ठ अर्हत् की वन्दना की। अपने दोनों पुत्रों को भूमि प्रदान कर स्वयं अनासंग तथा निःसंग हो कर वह दिगम्बर मुनि हो गया। रात-दिन पक्ष और माह से आहत, जब बारह वर्ष बीत गये, तब सुदर्शनदेव उपसर्ग करता है और सुप्रतिष्ठ मुनि के धैर्य का हरण करता है। मुनि ने उस घोर दुःख को सहन कर लिया और क्रोधविहीन ध्यान आरम्भ किया । शीघ्र उन्हें केवलज्ञान उत्पन्न हो गया और उन्होंने तीनों लोकों को जान लिया। चार प्रकार के देवों का आगमन हुआ। वहाँ अन्धकवृष्णि ने जिन को नमस्कार किया । नाना प्रकार के जन्म-मरण का हरण करनेवाले परम परमेश्वर से उसने पूछा कि उपसर्ग का क्या कारण है ? तब जिनमुख से यह वाणी निकली घत्ता - जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र के सुखावह कलिंग देश में बाजारों और भवनों से भरी हुई और कामनाओं को पूरा करनेवाली कांचीपुरी नगरी है। ( 6 ) IP दुम्बु पुणु अण्णु हुए। 2. B निव्धिण्णः $ निविष्ण। 3. BP सुम्पटुः S सुप्पति। 4. S अरिहु। 5. AB पहु । 6. B अणु 7. APS मासेहिं । 8. A साहुहुं सहितं । 9. P रोसहरिउं| 10 S विमालु । 11. B आयड 12. ADP चउयिहदेवश यशुषिषु। 13. AP अंधकविट्ठि $ चिट्ठे । 14. PS गयिउ। 15. S जंबूदीवे । ६६. S देस ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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