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महाकइपुष्फयंतविश्यउ मष्ठापुराणु
[82.5.1
कुंडलजुयलउं कंचणकवउ 'पत्तें सहुँ बालउ दिव्यवउ । णिविडहि मंजूसहि घल्लियउ । कालिदिपवाहि पमेल्लियउ। चंपापुरि पावसावरहिउ
आइच्चे राएं संगहिउ। सुत्तउ अवलोइउ कण्णकरु कण्णु जि हक्कारिउ सो कुयरु। सुउ पडिवण्णउ समाणियहि तें" दिण्णउ राहहि राणियहि। णं पोरिसपिंड णिम्मविउ ण एक्कहिं साहसोहु थविउ। णं चायदुवंकुरु' णीसरिज *धरणिइ विहलुद्धरणु व धरिउ । चड्डइ सुंदरु वष्टियफुरणु णावइ बीयउ दससयकिरणु। एतहि गरणाहें सिरु धुणिवि धुत्तत्तणु जामायह मुणिवि। "सी कोंति मद्दि बेण्णि वि । जणिउ परिणविउ पंडु पीणथणिउ"। दइयह आलिंगणु देतियइ कोंतीइ तीइ कीलंतियइ। सुउ जणिउ जुहिडिलु भीमु णरु णग्गोहरोहपारोहकरु। मद्दी पउलु सयणुद्धरणु" अपणु वि सहएबु दीणसरणु। पत्ता-तिहुवणि' लद्धपइट्टहु णरवइविटें इट्टहु। .
दिण्णी पालियरहहु गंधारि वि धयरट्ठहु ॥5॥
(5) कुण्डलयुगल, स्वर्णकवच और पत्र के साथ दिव्यशरीर बालक को मजबूत मंजूषा में रख दिया और उसे यमुना के प्रवाह में छोड़ दिया। चम्पापुर में पाप के आशय से रहित उसे, राजा आदित्य ने संगृहीत कर लिया। कान पर हाथ रखकर सोते हुए देखकर उस कुमार को ‘कर्ण' कहकर पुकारा गया। उसके द्वारा दिये गये उस शिशु को सम्माननीया रानी राधा ने पुत्रवत् अंगीकार कर लिया। वह मानो जैसे पौरुष-पिण्ड के रूप में निर्मित हआ हो. मानो साहससमह को एक जगह रख दिया गया हो, मानो त्याग का अंकर निकल आया हो, मानो धरती ने विहलों के उद्धार को धारण कर लिया हो। बढ़ रही है चमक जिसकी. ऐसा वह बढ़ने लगा मानो दूसरा सूर्य हो। यहाँ पर राजा (अन्धकवृष्णि) ने दामाद की धूर्तता देखकर और अपना माथा पीटकर, सघन स्तनोंवाली कुन्ती और माद्री की उससे शादी कर दी। अपने दयित (पति) को आलिंगन देते और क्रीड़ा करते हुए उस कुन्ती ने युधिष्ठिर को तथा वटवृक्ष के समान स्थूलबाहु भीम को उत्पन्न किया। माद्री ने स्वजनों का उद्धार करनेवाला नकुल और दोनों की शरण सहदेव को उत्पन्न किया।
घत्ता-नरपतिवृष्णि ने भी त्रिभुवन में प्रतिष्ठा प्राप्त करनेवाले, राष्ट्र के पालनकर्ता धृतराष्ट्र को गांधारी परणा दी।
(5) 1. B पत्तिहिं । 2. A दिलव३ । 3. A... गवासव" against Mss. 4.5 एएं। 5. AP कुपरु । 6. 1 तं। 7. APS "दुमकुरु। S, A घरणिविहलु। ५. A स। 10. A जणी.51 11B पीणत्यो । 2. कुलउद्धरण: Krecordsap: कुल। 19. A तिहुयण": B तिवण: तिहुयणि।