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महाकद्दपुष्फयंतबिरयउ महापुराणु इच्छियउं रूउ खणि संभवइ वहरि यि पयपंकयाई णबइ। असणु होइ ण भंति क वि ता भासइ कुरुकुलगवणरवि । भो' णहयर एह दिव्य सुमह अच्छउ महु करि कइवय दियह । को णासइ सजण पेयउं तहु मुद्दारयणु समप्पियउं। गउ णहयरु एहु वि आइयत्र असणु णेय' विवेइयज। सयणालइ सुत्ती कोंति जहिं सहस त्ति पइट्टउ तरुणु ताह परिमट्ट1 हत्थे थणजुयलु वियसाविउं' धुत्तें मुहकमल । कण्णाइ वियाणिउ पुरिसकरु चिंतइ जइ आयड पंई यरु। तो देमि' तासु आलिंगणउं अण्णहु ण वि अप्पमि अप्पणउ ! भवणंति कवाडु गादु पिहिउं गुज्झहरइ अप्प णउ रहिउ। सरलंगुलिभूसणु घल्लियउं "जुवएं पयर्डंगें बोल्लियां। दे देहि देवि महुं सुरयसुई उल्हावहि" विरहहुयासदुहं। मज्जायणिबंधणु अइकॉमउं ता दोहिं मि तेहिं तेत्थु रमिट। घत्ता-ता चम्महसमरूवउ ताहि गब्भि संभूयउ।
णवमासहि उप्पण्णउ कळ सयणहिं पच्छण्णउ ||4||
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मनचाहा रूप उत्पन्न किया जा सकता है, शत्रु चरणकमलों में प्रणाम करता है और अदर्शन होता है, इसमें जरा भी भ्रान्ति नहीं है। तब कुरुकुलरूपी आकाश का सूर्य पाण्डु कहता है- "हे विद्याधर, दिव्य और महनीय यह अंगूठी कुछ दिनों के लिए मेरे हाथ में रहे।" सज्जन के द्वारा कहे हुए को कौन टाल सकता है ? उसने उसके लिए मुद्रारल सौंप दिया। विद्याधर चला गया और यह (पाण्डु भी) चला आया। अदर्शन होने के कारण उसे जाना नहीं जा सका। कुन्ती जहाँ शयनकक्ष में सो रही थी, वह युवक तुरन्त वहाँ प्रविष्ट हुआ। हाथ से उसने स्तनतल को छुआ, और धूर्त ने उसका मुखकमल खिला दिया। कन्या ने जान लिया कि यह पुरुष का हाथ है। वह सोचती है कि यदि यह पाण्डु आया है तो आलिंगन दूंगी, किसी दूसरे के लिए स्वयं को अर्पित नहीं करूँगी। घर के भीतर से उसने किवाड़ मजबूती से लगा दिया। गुप्तघर में वह अपने को नहीं रख (छिपा) सका। अपनी सरल अंगुली से उसने अँगूठी उतार दी और युवक प्रकट रूप में बोला- "हे देवी मुझे सुरति-सुख दो और विरह की ज्वाला के दुःख को दूर करो।" दोनों ने मर्यादा के बन्धन का अतिक्रमण कर वहाँ रमण किया।
पत्ता-उसके गर्भ रह गया। नौ माह में कामदेव के समान उसे पुत्र हुआ। स्वजनों ने उसे छिपा दिया।
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6.5 रूयु। 7. AP हो।8. A या19.Aणेव; । 10.5 परिपइडं। 11.5 विहसायि। 12-AS यि जानिरा. पंडव। 11.S 15. APS Jउ। 16. जुअए। 17. ओल्हावहि। 18.5 दोहं। 19. PS रूपउ।