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महाकपुष्कयतविरय महापुराणु
तहिं पंडुकुमारें तिजगथुय सउहयति 'रमंती सहिहिं 'सहुं ता' लद्धउं मई णरजम्मफलु परु वंचिचि तंबोलेण हउ एक्कु वि खणु कण्ण ण वीसरइ * आणंदपणच्चियबरहिणहु" तहिं दिट्टिय पंडु" पुंडरिय विज्जाहरवरकरपरिगलिय पडिआयउ तं जोयइ" खयरु अक्खिउ खगेण रयणहिं जडिउं चिंतिवि किं किज्जइ परवसुणा
अबलोइय अंघकविद्विस्य । चिंत सुंदरि जड़ होइ महुँ । कोतिर जोयंतु थिरच्छिदलु । सो सूहउ पुलइयदेहु गउ। रिसि सिद्धि व हियवइ संभरइ । अण्णाहिं दिणि गउ णंदणवणहु । पीयलिय हरियमणियरफुरिय" । तरुणेण लइय अंगुत्थलिय । किं जोयहि इय पुच्छइ" इयरु । इह मेरउं अंगुलीउं पडिउं । तं दंसिउं तासु वाससिसुणा ।
घत्ता - विहसिवि'" वासहु पुत्तें "णिवकुमारिहियचित्तें ।
हिं खयरु नियच्छिउ तहु सामत्थु पपुच्छिउ ||
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'भो भणु भणु मुद्दहि तणउ गुणु तं णिसुणिवि' खेरु भई पुणु ।
[82.3.2
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शोधतल पर अन्धकदृष्णि की पुत्री को सहेलियों के साथ खेलते हुए देखा। वह सोचता है कि यदि यह सुन्दरी मेरी हो जाय, तो मैंने अपने मनुष्य जन्म का फल पा लिया। स्थिरपलक देखते हुए उसे कुन्ती ने छकाने के लिए पान से आहत किया। वह सुभग एकदम रोमांचित हो गया। एक क्षण के लिए भी वह उस कन्या को नहीं भूलता, ऋद्धि और सिद्धि की तरह वह उसे अपने मन में याद करता रहा। दूसरे दिन वह आनन्द से जिसमें मयूर नृत्य कर रहे हैं, ऐसे नन्दनवन में गया। वहाँ पाण्डु ने पीले और हरे मणियों से चमकती हुई सफेद, किसी विद्याधर के हाथ से गिरी हुई अँगूठी देखी। उस तरुण ने उसे ले लिया । विद्याधर उसे खोजता हुआ वहाँ आया। दूसरा ( पाण्डु) उससे पूछता है- "तुम यहाँ क्या देख रहे हो ?" विद्याधर ने कहा - "रत्नों से जड़ी हुई मेरी अँगूठी यहाँ गिर गयी है ।" यह सोचकर कि दूसरे के धन से क्या, व्यास पुत्र ने वह अँगूठी उसे बता I
घत्ता - राजकुमारी के द्वारा हर लिया गया है चित्त जिसका ऐसे व्यासपुत्र ने हँसते हुए स्नेह से विद्याधर की ओर देखा और उसका सामर्थ्य पूछा
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"हो हो, अँगूठी के गुण बताओ।" यह सुनकर विद्याधर फिर से कहता है कि इससे (अँगूठी से ) तत्काल
3. 11 अंध्य 1. एक रमति 55 सड 64 सुंदरु ४ सुंदर 7. APS तो। B. B पणच्चिर। 9 A 'चरिणिहो। 10. APS दिई । 11. A पंडुर-पंडुरिय: B पंडु पुंडरिय; P पंहुं पंडुरिय। 19. AB मणि विष्कुरिय। 13, 8 जीवउ 14 B पुछिइ । 15. B वियसेधि। 16, A नृयकुमारि ।
( 4 ) 1. AP भो भो भणु। 2. B मुद्दय 3. AP सुवि। 4. AP खगेसह 5. APS क