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82.3.11
महाकहपुष्फयंतविरयउ महापुराणु
[21
घत्ता-णरवइविविहि गेहिणि विमलसीलजलवाहिणि ॥ जणि भल्लारी भावइ पोमवयण पोमावइ ||1||
(2) तहि उग्गसेणु परसेणहरु
सुउ जायउ करिकरदीहकरु। पुणु देवसेणु महसेणु हुउ साहसणिवासु णरवंदधुउ' । एबहु लहुई सस सोम्ममुहि गंधारि णाम तूसवियसुहि। विण्णाणसमत्ति पयावइहि किं वष्णमि सुय पोमावइहि । कुरुजंगलि हस्थिणायणयरि तहिं "हत्थिराउ 'छुहधोयघरि। तहु देवि सुवक्कि सुकोंतलिय सिद्धा इव वरवण्णुजलिय' । हूयउ पारासरु "ताहि सुउ "रू णं सुरवरु सग्गचुउ । मच्छउलरायसुय सच्चवइ तहु दिण्णी सुंदरि सुद्ध" सइ। ।"उप्पण्णु वासु "तहि अलियकइ तहु भज्ज सुभद्द पसण्णमइ । घत्ता-ताहि तेण उप्पण्णउ सुउ धयरटु अदुषणउ ॥
लक्खणलक्खियकायउ पंडु विउरु पुणु जायउ ॥2॥
ते तिण्णि वि भायर मणहरहु
बहुकाले' गय 'सउरीपुरहु।
घत्ता-नरपतिवृष्णि की विमलशीलरूपी जल की नदी और कमलमुखी पद्मावती लोगों को भली लगती थी।
(2) उससे, हाथी की सैंड के समान लम्बे हाथवाला और शत्रुसेना का नाश करनेवाला उग्रसेन उत्पन्न हुआ। फिर देवसेन और महासेन हुए, साहस के घर और नरसमूह द्वारा संस्तुत। इनकी छोटी बहिन चन्द्रमुखी गान्धारी, सुधीजनों को सन्तुष्ट करनेवाली थी। वह विधाता की रचनाविज्ञान की परिसमाप्ति थी। पद्मावती की उस कन्या का मैं क्या वर्णन करूँ ? कुरुजांगल के चूने से पुते घरोंवाले हस्तिनापुर में हस्तिराज था। उसकी सुन्दर केशवाली सुवल्की नाम की देवी थी जो मातृकाओं के समान श्रेष्ठ और रंग में उजली थी। उससे पाराशर पैदा हुआ जो मानो स्वर्ग से च्युत सुरवर हो। मत्स्यकुल की शुद्ध और सती राजपुत्री से पाराशर का विवाह हुआ। उससे झूठा कवि व्यास उत्पन्न हुआ। प्रसन्नमति सुभद्रा उसकी पत्नी थी। घत्ता-उससे उसके न्यायप्रिय धृतराष्ट्र पुत्र हुआ। फिर लक्षणों से लक्षित शरीर विदुर और पाण्डु उत्पन्न हुए।
(3) बहुत समय के बाद वे तीनों भाई सुन्दर शौरीपुर नगर गये। वहाँ पर कुमार पाण्डु ने त्रिजग द्वारा संस्तुत
19. परमषयण।
(2) 1. AP परविंद। 2. P एपह। 9. B ससि। 4. B हो । 5. B“यहो। .A हत्यु राज। 7.5 दुहधोय। ४. B सकोतलिया। 9.5 पर" "वण्णुज्जलिया। 10. H तासु। 11. S रूएं। 12. B अहाजण्हुराय | 19 A सुद्धमइ। 14. Bउष्यण्ण। 15. B सहो। 16. A ललियगढ़।
(3) 1. ABP कालहिं। 2. A सबरोपुरहो।