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महाकइपुप्फयंतविरयड़ महापुराणु
यासीतिमो संधि
सहि गीलधम्मेल्लउ 'अंधकविट्ठि 'पहिल्लाहि । णंदणु गयवयणिज्जउ णस्वविट्रिट्ठ' दुइज्जहि ॥ ध्रुबकं ॥
(1)
क्षणजुयलघुलियचलहारमणि
गुणि सुयणसिरोमणि परिगणिउ बीयउ णं पुण्णपुंजरइउ हिमवंतु विजउ अचलु वि तणउ लहुयउ' वसुएउ विसालमइ पुणु मद्दि कुंरि कुवलयणयण 10 पियगोत्तमणोरहगाराहु बीयहु "सुमही सरमहुरसर" तुरियह सुसीम 14 पंचमहु पिय अवरहुवि पहाव त्तिमहु अटूठमयहु सुप्पह सुहचरिय"
जेहु सुभद्द णामें रमणि । सुताइ समुद्दविजउ जणिउ । अक्खोहु तिमियसायरु' तइउ । धारणु पूरणु अहिणंदणउ । उप्पण कोति पुणु हंसगइ मुणिहिं मि उक्कोइयमणमयण" । सिवएवि कंत पहिलाराहु । तइयरस सयंपह कमलकर । प्रियवाय'" णाम पच्चक्खसूय" । कालिंगी पणइणि सत्तमहु । णवमहु गुणसामिणि" संभरिय |
(1) 1. B अंधर्यादि। 2. AP पहिल्लउ K. I दिनास 9. AP कुमरिः ISS कुवरि । ! पिपत्राय 16. ABP सिच 17 B सुद्धचरेिय
[ 82.1.1
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बयासीवी सन्धि
पहली सती (धारिणी) से नीले केशवाला अन्धकवृष्णि उत्पन्न हुआ और दूसरी से निन्दारहित नरपतिवृष्णि ।
जेठे अर्थात् अन्धकवृष्णि की पत्नी स्तनयुगल पर आन्दोलित चंचल हारमणियोंवाली सुभद्रा थी। उससे गुणों में शिरोमणि गिना गया समुद्रविजय नामक पुत्र हुआ। दूसरा मानो पुण्यपुंज से शोभित अक्षोभ्य, तीसरा स्तिमितसागर, हिमवन्तविजय और अचलपुत्र, तथा धारणपूरण और अभिचन्द्र पुत्र हुए। सबसे छोटा विशालमति वसुदेव था। फिर हंसगामिनी कुन्ती उत्पन्न हुई। फिर कमलनयनी कुमारी माद्री हुई जो मुनियों के लिए भी कामोत्कण्ठा उत्पन्न करनेवाली थी। अपने कुल के मनोरथों को पूरा करनेवाले पहले (समुद्रविजय) की पत्नी शिवादेवी थी। दूसरे की काम के समान मधुरस्वरवाली धृति, तीसरे की कमल के समान हाथवाली स्वयंप्रभा, चौथे की सुनीता, पाँचवें की प्रिया कामदेव की माला के समान, प्रियावाक् (नामवाली), एक और (छठे ) की निष्पाप प्रभावती थी । सातवें की प्रणमिनी कलिंगी थी। आठवें की पत्नी शुभचरित सुप्रभा थी। नौवें की गुणस्वामिनी याद की जाती थी।
3. 5 णस्वर । 6. ABP दुइम्जउ 5 ABPS पुण्णपुंजु । 6A तिमिरसायक। 7. B नहुओ। Rष्णयणा 11 B या 12. 5 सुअमडी। 15. B सरु महुर। 14. A सुसीय 15. PS 18. A गुणभाषिणि ।