SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 262
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 2600 माहाकइपुप्फयंतविरयउ महापुराणु [93.10.1 (10) अण्णस्थ अहोमुहपीयधूम अण्णत्थ होमधूमोहसामु। अण्णात्य णिहियकुसपूलणीलु अण्णत्थ सुपोसियबालपीलु । अण्णस्थ वलियमेहलगुणाल अण्णत्य गुत्थवक्कलविसालु। अण्णत्व पभक्खियतोयवाउ अण्णस्थ सहियपंचग्गिताउ। अण्णत्थ परिट्ठियएक्कपाउ अण्णत्थुववासहिं खीणकाउ। अण्णत्य पुसियपालियकुरंगु अण्णत्थ चिपणचंदायणुग्गु। अण्णात्य तवइ कपउद्धहत्यु अण्णस्य सतिघोसणसमत्धु । अण्णत्थालाविणिसद्दमंजु अण्णस्थ पजियछारपुंजु। अण्णत्थ पत्तसंचयसमेउ अण्णत्व गीयगंधारगेउ। अण्णस्य विचिंतियरुद्दजाउ गायंति जांच संणिहियभाउ। अण्णस्य धूलियउद्धूलिएण करि मणिमयवलए चालिएण। अण्णत्व पहंतु चंदतु संझ सोहइ भरंतु मंत वि दुसज्झ। पत्ता-तहिं तावसणाहु दिउ तेण दुरासें। पणमिउ सीसेण मुक्कदीहणीसासें ॥10॥ किसी दूसरी जगह, कोई अधोमुख होकर धुआँ पी रहा था। एक और जगह कोई होम के धूम-समूह से श्यामवर्ण हो रहा था। एक और जगह, कोई रखे हुए दर्भ के पूलों से नीला था। एक और जगह किसी ने हाथी के बच्चे को पाल रखा था। एक और जगह, किसी ने मेखला और योगपट्ट बाँध रखा था। एक और जगह किसी ने विशाल वल्कल पहिन रखा था। एक और जगह पानी और हवा खानेवाला एक जगह पंचाग्नि तप सहनेवाला, एक और जगह एक पैर से स्थित रहनेवाला, एक और जगह उपवासों से क्षीणशरीर, एक और जगह पालित हरिण को खिलाता हुआ, एक और जगह उग्र चान्द्रायण तप करनेवाला, एक और जगह कोई ऊँचा हाथ करके तप करनेवाला, एक और जगह शान्ति की घोषणा करने में समर्थ, एक और जगह वीणा के आलाप शब्द से सुन्दर, एक और जगह भस्मसमूह का प्रयोग करनेवाला, एक और जगह पत्रों के समूह का संचय करनेवाला था। एक और जगह गान्धार गीत गानेवाला, एक और जगह रुद्रजप का विचार करते हुए सन्निहित भाव से गाते हुए, एक और जगह हाथ में धूल से धूसरित चलते हुए मणिमय वलय से तथा एक और जगह स्नान करते और सन्ध्या-वन्दना करते हुए और असाध्यमन्त्र का ध्यान करते हुए शोभित था। घत्ता-खोटी आशा से उसने तापसनाथ को देखा और लम्बी साँस खींचते हुए सिर से प्रणाम किया। (10)1.A होममुह । 2. AP'चंदायगंगु 12.A वयवकल' | 3. AP'घोसणपसत्यु । 4. AP"लानणि 15.A करमणिययबलसंचालिएण: करमपिरमययतए चालिारण:
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy