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93.9.10]
महाकइपुष्फयंतविश्वर महापुराण
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को गायउ तहु किर ढक्कराउ' मत्थइ पडियउ जणटक्कराई। पड़हें चज्जते विगयधम्म
णीसारिवि घल्तिउ पावयम्मु । घत्ता-णासइ कुलु सीलु परमधम्मु जसकित्तणु ।
इज्झउ परयारु दुग्गइगमणपवत्तणु ॥8॥
उब्बेइउ गर काणणहु जारु
तं दिठ्ठ तेण साहारसारु। गिरिकंदरि' णिज्झरसलिलहारु तं दिछ तेण णवतिलयचारु। तं दिछु तेण सरकमलबयणु लीलालोइर. मिगणयणणयणु। तं दिछु तेण मुयवत्तचेलु धरणीहरकडयावलिकरालु। तं दिछु तेण मघुसिणगिल्लु करिकुंभत्थलथणमणहरिल्लु। तं दिछु लेण थियरसविसेसु सोहिल्लमोरपिंछोहकेसु। तं दि? तेण महिधाउरत्तु तं दिठ्ठ तेण णं परकलत्तु । तहिं तावसकुलु' हरचरणभत्तु । दिउ दूसहतवतावतत्तु । धत्ता-वज्जरियसडंगु चविहवेयवियारणु।
रुईकुसचिंधु वारियवम्महवारणु ॥9॥
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टंकार करनेवाला कौन : बजते हुए नगाड़े के साथ धर्महीन और पापकर्मा उसे निकालकर बाहर किया गया।
धत्ता-परस्त्री कुल, शील, परमधर्म और यशकीर्तन का नाश करती है। दुर्गति के गमन में प्रवर्तन करानेवाली परस्त्री में आग लगे।
वह जार (कमठ) उद्विग्न होकर कानन में चला गया। वहाँ उसने उत्तम आम्रवृक्ष को स्त्री के रूप में देखा। पहाड़ की गुफा से झरती हुई जलधारा को उसने सुन्दर नवतिलक के रूप में देखा। उसने सरोवर के कमलरूपी मुख को इस प्रकार देखा, जैसे लीला से हिलते हुए मृगनयनी के नेत्र हों। पहाड़ की कटकावलि (गिरिनितम्ब, कंकणों की पंक्ति) से भयंकर, भूर्जपत्ररूपी वस्त्र को देखा। उसने मधु और केशर से गीले, हाथी के कुम्भस्थल के समान मनोहर स्तन को देखा। उसने शोभायुक्त मदूर के पुच्छभार को स्त्री के रसविशेष (शृंगारादि रस) के रूप में देखा। उसने धरती पर धातु की जो रक्तिमा देखी, मानो वह उसने परकलत्र को देखा। वहाँ पर शिवचरणों का भक्त दुःसह तप-ताप से सन्तप्त एक तापस-कुल उसे दिखाई दिया।
यत्ता-छहों अंगों को कहता हुआ, चारों वेदों का विचार करता हुआ, रुद्रांकुश के चिह्नवाला और कामदेव का निवारण करनेवाला।
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4. A टक्कराउ। 5. Pढराच । 6. A पावकम्मु। 7. A जगे किप्तणु।
(9) 1. AP"कंदर'। 2. A"लोलिर; P"लोइय । 3. A धारउत्तु । 4. A वासवकुलहर':P तायसकुल हर। 3. A धममहं वारणु।