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________________ 93.7.4] पहाकइपुष्फयंतविरयर महापुराणु [257 (6) तहि पढमपुत्तु णामेण कमदु' झववेयघोसु णं विउलु कमदु'। वंकगइ कुमइ ] भीमु सप्पु छिद्दण्णेसिउ उब्बूढदप्पु। बीयउ मरुभूइ महाणुभाउ णं सुरगुरु गुरुबुद्धीणिहाउ। अक्खरचंतउ' णं परममोक्खु सुरघरकुड्डु व चित्तेण चोक्खु । जेट्ठहु वरुणारुणकमलपाणि अणुयहु वि वसुंधरि सोक्खखाणि। जायउ दोहिं मि दो गेहिणीउ णं कामरसायणवाहिणीउ । कालें जंतें रइरत्तएण दुस्सीलें पेम्मुम्मत्तएण'। मत्तेण व करिणा विंझकरिणि अवलोइय लहुमायरहु घरिणि। कमरेण सढेण' गणिवि सुहिणि बहुदुक्खजोणि" ण णरयकुहिणि। घत्ता--ढोयवि तंबोलु णहमणिकिरणहिं फुरियउ । करपल्लवु ताहि तेण हसतें धरियउ ||6|| 10 आलग्गउ खणि खणि णिरु पयंडु दरिसाविय कामें' रायकेलि तह मणु झिंद व परिघुलिउ ताम सो कीलइ रीणउ केव जियइ चलु कुसुमबाणचोवाणदंडु। लंधिवि ऊरूजुयवाहियालि । उत्तंगपीणथणलाणि जाम। णं बिंबाहररसपाणु पियइ। उसका प्रथम पुत्र कमठ नाम का था, मानो वेदों का घोष करनेवाला बड़ा भारी ब्राह्मणमठ हो। कुबुद्धि और वक्रगतिवाला जो मानो सौंप हो, छिन्द्रान्वेषी और दर्प धारण करनेवाला । दूसरा पुत्र था-मरुभूति महानुभाव, जो मानो विशाल बुद्धि का खजानेवाला बृहस्पति हो, जो मानो अक्खरवंत (अक्षरों, सिद्धों से युक्त) मोक्ष था, देवगृह की भित्ति की तरह जो चित्त (चित्र, चित) से उत्तम (चोक्खु) था। बड़े की पत्नी रक्तकमल के हाथोंवाली वरुणा थी और छोटे की पत्नी सुख की खान वसुन्धरा थी। इस प्रकार दोनों की दो पलियाँ थीं जो मानो कामरूपी रसायन की नदियौं थीं। समय बीतने पर रति में रक्त एवं दुःशील तथा प्रेम से उन्मत्त उसने, जिस प्रकार मत्त गज विन्ध्याचल की हथिनी को देखता है, अपने छोटे भाई की पत्नी को देखा। धूर्त कमट ने उसे सुहृदया समझा, जबकि वह अनेक दुःखों की योनि नरक की गली थी। क्षण-क्षण अत्यन्त उत्तेजित होता हुआ वह चंचल कामदेव के चौगान का चंचल प्रचण्ड दण्ड उससे आ लगा। काम के द्वारा वह राजक्रीड़ा दिखाता है। दोनों उरुरूपी मैदान को लाँधकर उसका मन गेंद के समान वहाँ तक पहुँचता है, जहाँ तक ऊँचे और पीनस्तनों की मर्यादा थी। वह क्रीड़ा करता है। श्रान्त आदमी (6) I. A कमढः ' कमछु । 2. P कमठु । 3. A सुरगुरु बुद्धीए जसणिहाउP सुरवरगुरु बुद्धीणिहाउ । 4. A अक्खरपत्तउ।5. A असुरघरकुटोंय: P सुरघरकुल ali.A कामसरायणमोचणीउ । 7.A पेमुपमत्तएण | 8. किमटेण मठेण । 9. A संढेण। 10. बहुदुयखणिरंतर गरयकुहिणि। II.AP विष्फरिय। (7)1,A कालें। 2. AP मणझेंदुओ। 8.4 घरपलिउ। 4. Apणिलाणि।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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