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________________ 256 ] [93.4.13 महाकइपुष्फयंतविरयउ महापुराणु घत्ता--अरिविंदकयंतु परवहुविंदहं दुल्लहु। णामें अरविंदु' अरविंदालयवल्लहु ॥4॥ दाणेण जासु ण णीस संति रिउ जासु भएण जि णीससंति। भुंजति फलई काणणि वसति सिहिपिंछई तरुपल्लव वसंति। पुण्णेण जासु महि पिक्कसास कुसधाविर' अवित्तियकसास । भिच्चयणहं पूरिय जेण सास वीहंति जासु विसहर विसास । तमजालकाल पायालवास रणि संक वहति सुहालवास। बझंति धरिवि परिचत्तमाण मंडलिय जासु मंडलसमाण। जयसिरि णिवसइ जसु दीहदोसु दंडेण जेण उपसमिउ दोसु। सिरिपरगमणोत्तिउ जेण कोसु णायज्जियदब्हें भरिउ कोसु। मायंग जासु घरि बद्धरयण णाणारयणायरदिण्णरयण। तहु मंति विष्णु माणियविहूइ णामेण पसिद्धउ विस्सभूइ। घत्ता-पिय बंभणि तासु गुणतरुधरणि अणुंधरि। पइबय पइभत्त पइरइरसिय जुयंधरि ॥5॥ कोस 10 घत्ता-शत्रुसमूह के लिए यम के समान तथा परस्त्रियों के लिए दुर्लभ तथा लक्ष्मी का सखा अरविन्द नाम का राजा था। जिसके दान से दरिद्र लोग लम्बी साँसें नहीं लेते, किन्तु जिसके भय से शत्रु लम्बी साँसें लेते हैं, फल खाते हैं और जंगल में निवास करते हैं, मयूर पंख और वृक्षों के पत्ते पहिनते हैं, जिसके पुण्य से धरती पके हुए धान्यवाली है; लगाम से दौड़नेवाले जिसके अश्व चमड़े के चाबुक से आहत नहीं होते; जिसने अपने भृत्यजन की सदैव आशा पूरी की है, जिससे विषमुख विषधर डरते हैं; जहाँ पातालयास तमसमूह के समान काला है; अमृतकण का भोजन करनेवाले जिससे युद्ध में आशंका करते हैं; बन्दी बनाकर छोड़े गये माण्डलिक राजा जिसके लिए कुत्तों के समान हैं। जिसके लम्बे हाथों में लक्ष्मी निवास करती है; जिसने दण्ड से दोषों का शमन कर दिया है, जिसने लक्ष्मी के लिए दूसरे के पास जाने के लिए कोशपान दे दिया है (क्षमा कर दिया है); जिसने न्याय के द्वारा अर्जित द्रव्य से अपना कोश भरा है, उसकी विभूति को माननेवाला विश्वभूति नाम का प्रसिद्ध ब्राह्मण मन्त्री था। ____घत्ता-उसकी गुणरूपी वृक्ष की भूमि अनुन्धरा प्रिय ब्राह्मणी थी जो पतिव्रता, पतिभक्ता और पतिप्रेम की रसिका प्रधान पत्नी थी। (5) 1. A लिरिपिछई। 2. A कुसयारि रयवि। . P"कुसास।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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