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महाकइपुष्फयतविरया महापुराणु
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पत्ता-जहिं घरसिरचिंधु सिहरकलसि परिघोलइ।
सिंचहुं णियवंसु णावइ सलिलु णिहालइ ॥3
जहिं इंदणीलकंतीविहिण्णु जहिं पोमरायमाणिक्कदित्ति सम सोहइ महिय थणत्थलीहि । जहिं णिवडियभूसणफुरियमग्गु जहिं लोयधित्ततंबोलराउ जहिं बहलघवलकप्पूर धूलि सामंत मंति भड भुत्तभोय जहिं चंदकंतणिज्झरजलाई सोहग्गरूवलायण्णवंत जहिं खत्तिय थिय' णं खत्तधम्म जहिं वइस पवर वइसवणसरिस सुद्द वि विसुद्धमग्गाणुगामि
णउ णज्जइ कज्जलु णयणि दिण्णु। उच्छलइ ण दीसइ घुसिणलित्ति। जहिं रंगावलि हारावलीहिं। हरिलालाकरिमयपंकदुग्गु। बुड्डइ' कुंकुमचिक्खल्लि पाउ। कुसुमावलिपरिमलविलुलियालि। जहिं एंति जति णायरिय लोय। पवहति सुसीयई णिम्मलाई। जहिं णर सयल विणं रइहि कत। जहिं बंभण विरइयबंभयम्म। वण्णत्तयपेसणजणियहरिस। तहिं राउ वसई चउवण्णसामि।
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पत्ता-जहाँ घरों के अग्रभाग पर स्थित पताकाएं शिखर-कलशी पर हिलती है, मानी अपने वश को सींचने के लिए जल को देख रही हों;
जहाँ आँखों में लगाया गया काजल इन्द्रनीलमणि की कान्ति से प्रभावित होकर दिखाई नहीं देता; जहाँ पद्मराग माणिक्यों की दीप्ति चमकती है, केशर का लेप दिखाई नहीं देता; जहाँ स्तनरूपी स्थलियों (थालियों) से सम्मानीय महिला और हारावलियों से रंगावली समान रूप से शोभित है; जहाँ के मार्ग गिरे हुए आभूषणों से स्फुरित हैं; घोड़ों की लार एवं हाथियों के मद-पंक से दुर्गम हैं; जहाँ लोगों के द्वारा छोड़ा गया ताम्बूल सग और पाँव केशर की कीचड़ में डूब जाता है; जहाँ कपूर की प्रचुर सफेद धूल है; जहाँ कुसुमावलियों के पराग पर भ्रमर मँडरा रहे हैं; जहाँ चन्द्रकान्त मणियों के पवित्र और शीतल निर्झर-जल प्रवाहित हैं; जहाँ सौभाग्य, रूप और लावण्य से युक्त सभी मनुष्य ऐसे मालूम पड़ते हैं, जैसे रति के कान्त (प्रिय) हों; जहाँ क्षत्रिय ऐसे हैं, जैसे क्षात्र-धर्म स्थित हों; जहाँ ब्राह्मण ऐसे हैं जो ब्राह्मधर्म का आचरण करनेवाले हैं; जहाँ वैश्य कुबेर के समान हैं, जिन्होंने वर्णत्रय की सेवा में हर्ष माना है, ऐसे शूद्र भी विशुद्ध मार्ग के अनुगामी हैं; वहाँ चारों वर्गों का स्वामी राजा निवास करता है।
(4)I.ASHA भुसियभाय। .A यति । 4. Aण पिप | B.A