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________________ 3 ३ 93.2.8 महाकइपुष्फलक्रियउ महापुराण सिवदिक्खाकंताबसा " जस्स धम्ममगं गया मणिमो तस्स विचित्तयं दिव्यं दुक्कियरितयं जं दट्ठूणं तावसा । उज्झियमिच्छासंगया। काउं सुद्धं चित्त । पासजिणस्स चरितयं । घत्ता - इह " जंबूदीबि भरहि सुरम्मउ " सुहयरु 1 जगवउ दाणालु करिव रायढोइयकरु ॥॥॥ (2) कणभरियकणिसकरिसण पगाम जहिं जणु असुर संपण्णकामु जर्हि ठेक्करंत पवहंत धवल जहिं गोउलाई मणरंजणाई जहिं दुद्धई घणसाहालयाई जहिंकणचकंजकिंजक्करेणु जहिं गामासष्णहिं संचरति सलिलेण" काई पिज्जइ पवासु सुहभूयगाम जहिं विउलराम' । सोहग्गे रूवें जित्तकामु । घरकामिणीहिं गिज्जत धवल । भरिय बहुरंजणाई' । दवाई वि साहालयाई । विसिति धिवंति मत्ता करेणु । कलपिंक कलगछेसहिं चरति । पंडच्छहिं रसु पसमियपवासु । | 253 15 5 को भी नहीं मानते, जो शिव दीक्षारूपी कान्ता के वशीभूत हैं, ऐसे तपस्वी जिन (पार्श्वनाथ) को देखकर, मिथ्या संगति को छोड़कर धर्ममार्ग में लगते हैं, ऐसे उन पार्श्वनाथ के चरित को, जो दिव्य और दुष्कृतों से रहित है, विचित्र चित्त की शुद्धि के लिए कहता हूँ । घत्ता - इस जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में शुभंकर सुरम्य जनपद है, जो दानयुक्त हाथी के समान राजा के लिए ढोइयकर (कर देनेवाला, सूँड देनेवाला) है, (2) जहाँ कणों से भरे हुए धान्य से युक्त प्रचुर क्षेत्र हैं, शुभ प्राणिसमूह है और बड़े-बड़े उद्यान हैं; जहाँ मनुष्य क्रोधरहित और पूर्णकाम हैं तथा सौभाग्य और रूप में कामदेव को जीतनेवाले हैं, जहाँ देक्कार ध्वनि करते ( ढँकारते हुए धवल (बैल) घूमते हैं और गृहस्त्रियों द्वारा धवल गीत गाये जाते हैं; जहाँ मनोरंजन करनेवाले गोकुल तथा नवनीत से भरे हुए, प्रचुर जलपात्र हैं, जहाँ दूध अत्यन्त प्रशंसा से युक्त है, जहाँ नन्दनवन भी अनेक शाखाओं से युक्त हैं; जहाँ स्वर्णकमल की परागधूल मतवाले हाथी अपने सिर के ऊपर डालते हैं। जहाँ ग्रामों के निकट के धान्य खेतों में चटक पक्षी विचरण करते हैं; प्याऊ पानी से क्या, जहाँ मार्ग की थकान को मिटानेवाला रस ईखवृक्षों से पिया जाता है; गोपों की वेणु (बाँसुरी) में दिये हैं कान KA तिवकताविसावया । प्र. A इन III A सुरम्मल ह । ( 2 ) 13 लिगामा । 2. AP अग्रेड 3. 11. हो संगे जिकण्ण Punts this fomt. 5. AJ ढेकरांते | 6. गिति 7. महुराई। A कलव ंतहिं | A reads chs line as: सलिलेण काई गिज्न भवासु, पंच्छुहि र थए यए समियपचासुः Preads it as सलिलेश कार्ड छिन् सुपसण्या ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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