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________________ 92.21.151 महाकइपुण्फयंतविरवउ महापुराणु [ 251 पंडियपंडेिवमरणपयासे मासमेत्तु थिउ जोयम्भासें। तवतावोहामियमयरद्धउ पंचसएहिं रिसिहि सह सिद्धउ । आसदहु मासह सियपक्खइ सत्तमिवासरि चित्तारिक्खइ। पुब्बरत्ति' भत्तामरपुज्जिउ णेमि सुहाई देउ मलवज्जिउ । एयहु धम्मतिथि पवहंतइ णिसुणहि सेणिय कालि गलतइ । बंभमहामहिणाहहु णंदणु चूलादेविहि णयणाणंदणु। शान णामें नक्कम संजायउ जगजलरुहणेसरु। वण्णे तत्तकणयवण्णुज्जलु सत्तचावपरिमाणु महाबलु। सत्तसयाई समाह जिएप्पिणु' छक्खंड वि मेइणि मुंजेप्पिणु। गउ मुउ कालहु को वि ण चुक्का सक्कु वि खयकालहु णउ सक्कई । इय जाणिवि चारित्तपवित्तहु संतहु "सत्तुमित्तसमचित्तहु । घत्ता-सुविहिहि अरुहहु तित्थंकरहु धम्मचक्कणेमिहि वरई। संभरह" पुष्पदंतहु पयई विविहजम्मतमसमहरई ॥21॥ 10 15 इय महापुराणे तिसद्विमहापुरिसगुणालंकारे महाकइपुष्फयंतविरइए महाभब्वभरहाणुमपिणए महाकव्वे णेमिणाहणियाणगमण" णाम "दुणउदिमो परिच्छेउ समतो 192॥ आदरणीय नेमि ऊर्जयन्त पर्वत पर गये और संलेखनाव्रत के प्रयास में एक माह तक योगाभ्यास में स्थित रहे। तप के ताप से कामदेव को नष्ट करनेवाले वे पाँच सौ मुनियों के साथ सिद्ध हो गये। आषाढ़ माह के शुक्लपक्ष में चित्रा नक्षत्र में सप्तमी के दिन, पूर्वरात्रि में, भक्तामरों के द्वारा पूजित और मल से वर्जित होकर शोभित थे। हे श्रेणिक ! सुनो इनके धर्मतीर्थ के प्रवाहित होने पर और समय बीतने पर, ब्रह्म महामहीश्वर और चूलादेवी के नेत्रों को आनन्द देनेवाला पुत्र, ब्रह्मदत्त नाम का चक्रवर्ती हुआ, जो विश्वरूपी कमल के लिए सूर्य था। वर्ण में तपे हुए सोने के रंग का, सातधनुष ऊँचे शरीरवाला महाबली, सात सौ वर्ष जीवित रहकर छह खण्ड धरती का उपभोग कर, वह भी मर गया। काल से कोई नहीं बचता। इन्द्र भी काल के आगे कुछ नहीं कर सकता। यह जानकर चारित्र से पवित्र, शत्रु-मित्र में समचित्त रखनेवाले सन्त, घत्ता-सुविधि अरहन्त धर्मचक्र नेमि तीर्थकर और पुष्पदन्त के श्रेष्ठ विविध जन्मों का अन्धकार दूर करनेवाले चरणों को याद करो। त्रेसठ महापुरुषों के गुणालंकारों से पुक्त इस महापुराण में महाकवि पुष्पदन्त द्वारा विरचित और महाभव्य भरत द्वारा अनुमत महाकाव्य का नेमिनिर्वाण-गमन नाम का बानवेवौँ परिच्छेद समाप्त हुआ। 3. सहुं। 4. Areads basaandaash. 2.AP जीवेप्पिणु। B.A चुपच । 9. सत्त। 10. RP°क्तुि । 11. संभरह। 12.4"जम्मभवसमहर: BSAIS. जम्मममसमहर, जम्मसमहरई। 13. A adds : बंभदसयक्वट्टिकहतरं। 14. AS दुणददिमो। 15. Aomits this पुष्पिका। 16. 8 अरासेंधु।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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