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महाकपुप्फयंतविरयत महापुराणु
घत्ता - पंच विलवतावसुतत्ततणु" चिरु जिणेण सहुं हिंडिवि । गय ते सत्तुंजयगिरिवरहु पंडव जणवउ छडिचि ॥७॥ ( 20 )
तहिं आयावणजोयपरिट्ठिय" ।
कइयमउडकुंडलई सुरत्तइं' तणुपलरसवस लोहियहरणइं खमभावेण विवज्जियदुक्खहु णियसरीरु जरतणु व गणेपिणु उलु महामुणि सह उ" वि मुउ धत्ता-मिच्छतु जडत्तणु णिद्दलवि देंतु बोहि दिहिगारा । पंडवमुणि 'जणमणतिमिरहर महुं पक्षियंतु भडारा | 20 | ( 21 )
पावयम्मु दुज्जणु विवरेरउ । चउदिसु साहणेण संदाणिय | कडिसुत्ताई हुयासणतत्तई । रिसि परिहाविय लोहाहरणइं । तव सुय भीमज्जुण गव मोक्खहु । अरिविरइ उवसग्गु सहेप्पिणु । पंचाणुत्तरि अहमीसरु हुछ ।
सिङ्कवरिट्ठसणिट्टाणिट्टिय' भाणे कुरुणा उ तेण दिट्ठ ते तहिं अवमाणिय
छहसयाई णवणवइ य वरिसई महि बिहरेष्पिणु मयणवियारउ
णवमासाई अवरु चउदिवसई । गउ उज्जतहु णेमि भडारउ ।
[ 92.19.9
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घत्ता - तप के ताप से सन्तप्त-शरीर वे पाँचों पाण्डव भी बहुत समय तक जिनवर के साथ परिभ्रमण कर, जनपद छोड़कर शत्रुंजय गिरिवर के ऊपर गये ।
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श्रेष्ठ वरिष्ठ अपनी निष्ठा में निष्ठ वे आतापनयोग में स्थित हो गये। तब कुरुनाथ (दुर्योधन), पापकर्मा दुर्जन और विरोधी भानजा वहीं पर रहता था। उसने उन्हें देखा और वहीं उनकी अवमानना की। चारों ओर से सेना ने घेर लिया। कड़ा, मुकुट, कुण्डल, कटिसूत्र आग में तपाये तथा शरीर के मांस, रस, चर्बी और रक्त का अपहरण करनेवाले लोहे के आभरण मुनि को पहिनाये। लेकिन क्षमाभाव से युधिष्ठिर (तपःसुत) भीम और अर्जुन, दुःख से रहित मोक्ष चले गये। अपने शरीर को जीर्ण तिनके की तरह समझते हुए शत्रुकृत उपसर्गों को सहन करते हुए नकुल और सहदेव महामुनि भी मृत्यु को प्राप्त हुए और सर्वार्थसिद्धि में अहमेन्द्र हुए। घत्ता - मिथ्यात्व और जड़त्व का निर्दलन कर, बोधि देते हुए, धैर्य धारण करनेवाले, जनमन का अन्धकार दूर करनेवाले आदरणीय पाण्डव मुनि मुझ पर प्रसन्न हों।
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छह सौ निन्यानवे वर्ष, नौ माह और चार दिन तक धरती पर बिहार करने के बाद, कामदेव के नाशक
13. BS सुतत्तणु ।
( 20 ) 1. PAIS. "सुणिट्ठा 2. A आवणजोएण S आधाबणजोएं। 3. P भाइणेज 4 B सुतत्तद्दं । 5. B भीमञ्जण । 6. S सहए। 7. Sommits मण ( 21 ) 1. AP "सयाई वरिसहं णवणउय जयजयई यरि: AJs. णवणउयई यरिस 2. APS उज्र्ज्जतहो ।