SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 251
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 92.19.81 महाकइपुष्फयंतविरयत महापुराणु [249 फणि इंकि मुउ भिल्लु वरायउ इब्भकेउ वणिवरकुलि जायउ। पुणु हउँ कालें जिणपणवियसि वयहलेण हुयउ कप्पामरु । पुणु सुरु 'धरिवि देवभाभासुरु हुउ चिंतागइ खयरणरेसरु । पुणु तउ' चरियि समाहि लहेप्पिणु उप्पण्णउ माहिंदि मरेप्पिणु। पुणु अवराइउ परवइ हूयउ मुणि होइवि अच्चुइ" संभूयउ। पुणु संजायउ दव्वणिहीसरु'५ सुप्पइ?' णामें पुहईसरु। पत्ता-हउँ हुरािस सोलहकारणई णियहियउल्लइ भावियई। जिणजम्मकम्मु मई संचियउं बहुदुरियई उड्डावियई ॥18॥ (19) पुणरवि मुउ 'रयणावलियंतइ अहमिंदत्तणु पत्तु जयंतइ। तहिं होतउ आयउ मलचत्तउ अरहंतत्तणु इह संपत्तउ। ता पंचमगइसामि णवेप्पिणु पंचासवदाराई 'वहेप्पिणु। पंचिंदियई दिहीइ णियत्तिवि पंच वि संणाणई सचिंतिवि। पंचमहव्ववपरियरु रइयउ पंचहिं पंडवेहिं तउ लइयउ। कोंति सुहद्द दुवई' "सुयसत्तउ' रायमईहि पासि णिक्खंतउ । तिव्वतवेण पुण्णसंपुण्णउ' अच्चुयकप्पि ताउ उप्पण्णउ । तिण्णि वि पुणु मणुयत्तु लहेप्पिणु सिज्झिहिंति कम्माई महेप्पिणु। देह धारण कर देव हुआ। फिर चिन्तागति विद्याधर राजा हुआ। फिर तपकर और समाधि प्राप्त कर माहेन्द्र स्वर्ग में उत्पन्न हुआ। फिर, अपराजित राजा हुआ। फिर, अच्युत स्वर्ग में उत्पन्न हुआ। फिर, मैं द्रव्यनिधीश्वर सुप्रतिष्ठ नाम का राजा हुआ। ____घत्ता-मैं फिर मुनि हुआ, और मैंने अपने हृदय में सोलहकारण भावनाओं की भावना की। मैंने पुण्य का बन्ध किया और अनेक पापों को उड़ा दिया। (19) फिर मरकर रत्नमालाओं से सुन्दर जयन्त स्वर्ग में अहमेन्द्रत्व को प्राप्त किया। वहाँ से आकर मल से त्यक्त यह अरहन्तपद यहाँ पाया।" तब पाँचवीं गति (मोक्ष) के स्वामी को प्रणाम कर, पाँच आश्रव के द्वारों को बन्द कर, सन्तोष से पाँच इन्द्रियों को निवृत्त कर, पाँच सत् ज्ञानों की चिन्ता कर, पाण्डवों ने पाँच महाव्रतों का समूह रचा और तप ग्रहण कर लिया। शास्त्रों में आसक्त कुन्ती, सुभद्रा और द्रौपदी ने राजमती के पास दीक्षा ले ली। पुण्य से सम्पूर्ण वे तीव्र तप के कारण अच्यत स्वर्ग में उत्पन्न हुई। तीनों फिर मनुष्यत्व को प्राप्त कर कर्मों का नाश कर सिद्धि को प्राप्त करेंगी। 5. APS इक्विज । 6. S"पणभिय । 7.ABPK मरेवि । B.A देहभालासुरु19.5 तवु। 10. B लएप्पिणु। 11. B अस्थुउ । 12. A देउणिहीसरु; BPS दिव्वणिहीसरु। 13. P सुपझ्छु । 11. BKS omit हुआ। (19)1.P°वलिअंतए12.5°दारावई । 3. AP पिहेप्पिणु; AI5. बहेप्पिणु। 4. B दिहिए। 5. AP णियतिवि। 6. A बड। 7. PAIS. दुपय"18. A तु:P सुव 19. APAI5. संतउ। 10. Aणिक्खित्तर Bणिक्वंतर। 11.A पुन्नतवेण। 12. P संपण्णउ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy