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________________ 248 ] महाकपुस्फयंतविरय महापुराणु पुण्णु निबद्ध ं किं वणिज्जइ मरिवि तेत्यु बिणि वि संणासें अग्गसगिरी जायउ "सियसेविउ जिणु सुमरंत दुक्किउ छिज्जइ । दंसणणाणचरित्तपयासें । चिरभवसोमभूइ सुरु" सेविउ । पत्ता - तहिं होंती कालें ओयरिचि हुय" हरिसेण जुहिट्ठिलु । सिरिसेण 14 भीम भीमारिभडु भुयबलमलणु महाबलु ॥ 17 ॥ ( 18 ) 'बालमराललीलगइगामिणि होइवि उप सा वि मित्तसिरि वि सहएउ ण चुक्कड़ दुवयहु सुय पेम्भमहाणइ es जुहिलि हयवम्मीसर कहर भडाउ भक्खियतरुहलु रिसि विद्धंतु सधरिणिइ वारिउ विय भडारा वियलियगावें अवर वसंतसेण जा कामिणि । फणहरि गन्तु भ्रमवित्यिण्णी । कम्मु णिबद्ध अवसें दुक्कइ । जा दुग्गंध कण्ण सा दोम " । भणु भणु जियभवाई णेमीसर । होंतउ पढमजम्मि हउं जाहलु । पाणि सबाणु धरिउ ओसारिउ । महुमासहं णिवित्ति कय भावें । [ 92.17.9 10 5 का पाप नष्ट हो जाता है । वहाँ पर वे दोनों दर्शन, ज्ञान और चरित्र का है प्रकाश जिसमें ऐसे संन्यास के साथ मरकर सोलहवें स्वर्ग में श्री से सेवित देवियाँ हुई; पूर्वजन्म के सोमभूतिचर देव के द्वारा लेि बत्ता - वहाँ से होकर, समय के अनन्तर हरिषेणा युधिष्ठिर हुई । श्रीषेणा शत्रुओं से लड़नेवाला, भुजबल से चूर-चूर कर देनेवाला महाबल भीम हुई । ( 18 ) बालहंस की लीलागति के समान गमन करनेवाली जो दूसरी वसन्तसेना थी, वह अर्जुन के रूप में उत्पन्न हुई है। धर्म से विच्छिन्न नागश्री नकुल के रूप में जन्मी है, मित्र श्री सहदेव हुई। बाँधा हुआ कर्म कभी नहीं चूकता। वह अवश्य होकर रहता है। और जो दुर्गन्धयुक्त कन्या थी, वह प्रेमरूपी जल की महानदी, राजा द्रुपद की कन्या द्रौपदी है।" युधिष्ठिर पूछते हैं- "हे कामदेव का नाश करनेवाले नेमीश्वर ! आप अपने जन्मान्तर बतायें।" आदरणीय नेमीश्वर कहते हैं कि प्रथम जन्म में मैं वृक्षों के फल खानेवाला भील था । एक मुनि को विद्ध करते हुए अपनी पत्नी के द्वारा मना किया गया और मैंने हाथ पर रखे हुए बाण को उठा लिया। गर्वरहित होकर मैंने आदरणीय मुनि को प्रणाम किया और भावपूर्वक मधु, मांस से मैंने निवृत्ति ले ली। साँप के काटने पर बेचारा भील मर गया, और वणिग्वर कुल में इब्भकेतु हुआ। फिर समय आने पर जिनवर के लिए सिर से प्रणाम करनेवाला मैं व्रत के फल से कल्पवासी देव हुआ। फिर कान्ति से भास्वर 7. A सुअरत: S सुपरत | 8 A तिष्णि यि 9. AS अंतसग्गि । 10. A सियसेविय 11. A सुरदेवियः 5 सुरदेविउ 12. A होस 15. A हुए सोमयत्तु जुडिष्ट्ठिल । 14. A सोमिल्लु भीषु। (tt appears that P contains art altogether new version from बहुविदेहि down to बङ्गरिणि, while A seems to agree with P in lines which are common to all versions. ( 18 ) 1. A agrees with P in the text of the first two lines for which sce under 17 2 5 धप्पु 9 A दीयइ। 1. AP घरेषि ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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