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________________ 92.17.8] महाकपुप्फयंतविरयउ महापुराणु उज्झहि" सिरिसेणहु णरणाहहु जायउ पुत्तिउ" कुवलयणायणउ सिरिकंतहि जयलच्छिसणाहहु । "मुहससंककरधवलियगयणउ " । पत्ता - हरिसेण णाम तहिं पढम सुय हरिसपसाहियदेही । सिरिसेण अवर वम्महसिरि व रूवें सुरबहु जेही | |16|| ( 17 ) वरणरणारीविरइयतंडवि बद्धसंघ जाणिवि ससितेयउ खतिवयणु आयणिवि तुट्टी एक्कु दिवसु झायंतिउ जिणु मणि झत्ति वसंतसेणणामालइ चिंतिउं जिह एयहं सिवगामिउ जिह एयहुं णिब्बूढपरीसहु एव सलाहणिज्जु सलहंतिइ सरिवि 'सजम्मु सयंवरमंडवि । हलि बिणि वि पावइयउ एयउ । सुकुमार वि तवयम्मि णिविट्ठी । जोइयाउ' सव्वउ णंदणवणि । वेसर कुसुमसरावलिमालइ । तिह मज्झ वि होज्जर तबु दूसहु । तिह मज्झ वि होज्जउ तबु दूसहु । गणिय पावें सहुं कलर्हति । [247 5 लेते हुए और हँसते हुए यह निदान किया। अयोध्या में विजयलक्ष्मी से युक्त श्रीषेण राजा की श्रीकान्ता की हम दोनों कुवलय नेत्रोंवाली और मुखचन्द्र की किरणों से आकाश को धवल कर देनेवाली पुत्रियाँ हुईं। घत्ता - उनमें पहली का नाम हरिषेणा थी, जिसका शरीर प्रसन्नता से प्रसाधित था। दूसरी श्रीषेणा कामलक्ष्मी के समान और रूप में सुरबधू जैसी थी । ( 17 ) नर-नारियों द्वारा किया जा रहा है नृत्य जिसमें ऐसे स्वयंवर मण्डप में अपने पूर्वजन्म को याद कर तथा ली हुई प्रतिज्ञा को जानकर, चन्द्रमा के समान कान्तिवाली हम दोनों ने यह संन्यास ले लिया ।” क्षान्ति आर्यिका के वचन सुनकर सुकुमारी सन्तुष्ट होकर तपकर्म में लग गयी। एक दिन नन्दमवन में जिनवर का मन में ध्यान करती हुई सबकी सब देखी गयीं। कामदेव के तीरों की माला वसन्तसेना वेश्या ने सोचा- जिस प्रकार इनका ( तप है) हे शिवगामी जिनस्वामी ! वैसा मेरा भी हो, जिस प्रकार इनका परीषह सहन करनेवाला तप है, उसी प्रकार मेरा भी दुःसह तप हो। इस प्रकार प्रशंसनीय की प्रशंसा करती हुई तथा पाप के साथ संघर्ष करती हुई उस गणिका ने जिस पुण्य का अर्जन किया, उसका क्या वर्णन किया जाये ? जिनेन्द्र का स्मरण करनेवालों 16. P | 17.S पुतिं कु8. AP णयणिउ 19. ABPS मुहससहरकर | 20. A गयणिउ; P गयणओ। ( 17 ) LAS omits] स in सजम्मु: B सुजम्मु । 2. P सुकुमारे। 3. From this line to 18.2, P has the following version :-" एक्कु दिवस आयंतिउ जिणु मणे, संठियाउ सम्बद्ध गंदणवणे तेत्यु वसंतसेणाभालिय, वेसय कुसुमसरायलिमालिय । बहुविदेहि परिमंडी जंती, लोलए वयणहो वयणु भगती चिक करवलेतु लायंती, जयणसरावलीए पहणंती नियवि णियाणु कयज सुकुमारिए, चहुदोरुग्णभारणिरुमारिए। जिह एयहे एए सुकरायर, तिह मज्जु दि जम्मंतरे परवर । जिह एयले सोहग्गमहाभरू, तिह मज्जु वि होज्ज सुणिरंतर एम नियाणु करवि अण्णाणिणि, हुय अभ्माणहो जिस सा बद्दरिणि । कार्ले कहिं मि मरेवि संणाओं, दंसणणाणधरित्तपया अंतस जाइय सियसेविय, चिरभवसोमभूइ सुरदेविय। यत्ता- तर्हि होतउ कालें ओबरेयि हुए सोमयतु जुहिट्ठिलु । सोमेलु भीम श्री पारिभद मुचबलमलणु महामडु ॥17॥ 4. A संठियाउ । 5. A तेत्यु for झति । 6. A सारए 1
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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