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________________ 246 । महाकइपुष्फयंसबिरयउ महापुराणु [92.16.1 (16) ने नागडे वणिउत्तउ । घरिणि 'जसोयदत्त धणवंतहु । सुउ जिणदेउ अवरु जिणयत्तउ जिणवरपयपंकयजुयमत्तउ। पूइगंध किर दिज्जइ इवें एउं वयणु आयण्णिवि जेहें। बालहि कुणिमसरीरु 'दुगुंछिवि सुब्बयमुणि गुरु हियइ समिच्छिवि। तउ लेप्पिणु थिउ सो परमट्टहु । पायहिं णिवडिय' परु पाणिहु। उवरोहें कुमारि परिणाविउ दुग्गंधेण सुछ संताविउ। ण हसइ ण रमइ णउ बोल्लावइ दुहवत्तणु किं कासु वि भावइ । जिंदंती णियकुणिमकलेवरु जिंदइ णियसहं धणी परियण घरु सुव्वयखंतिय झत्ति णियत्तिइ पुच्छिय" चरणकमलु पणतिइ। बिपिण' वि देविउ गुणगणरइयउ । एयउ किं कारणु पावइयउ। भणइ भडारी वरमुहयंदहु वल्लहाउ चिरसोहम्मिदहु । बेण्णि वि जिणपुज्जारयमइयउ णंदीसरदीवंतरु गइयउ। तहिं संदिग्गमणे संजाएं अवरोप्परु बोल्लिउं अणुराएं। जइ माणुसभउ पुणु पावेसहुं तो बेण्णि वि तवचरणु चरेसहुं। इय णिबंधु बद्धउ विहसंतिहिं दोहि मि करु करपंकइ दितिहिं । 10 ___15 (16) वहीं पर धनदेव नाम का धनवान् वणिपुत्र था। उसकी गृहिणी अशोकदत्ता थी। जिनदेव और जिनदत्त नामक पुत्र जिनवर के चरणकमलों के भक्त थे। 'दुर्गन्धयुक्त कन्या (जेठ भाई को) दी जाती है-यह वचन सुनकर बड़ा भाई बाला के सड़े-गले शरीर से घृणा कर, सुव्रत मुनि को अपने मन में धारण कर और तप लेकर परमार्थ में स्थित हो गया। दूसरा अर्थात् छोटा भाई, अपने प्राणों के लिए इष्ट (बन्धुजन या माता-पिता) के चरणों में जा गिरा और उनके अनुरोध से उस कन्या से विवाह कर लिया। परन्तु उसकी दुर्गन्ध से अत्यन्त सन्तप्त हुआ। वह न हैंसता, न रमण करता और न बुलाता। दुर्गन्धित शरीर क्या किसी को अच्छा लगता है ? अपने सड़े हुए शरीर की निन्दा करती हुई वह अपने सुख, धन और घर की निन्दा करती है। घर से निकलकर वह शीघ्र ही चरणकमलों में प्रणाम करती हुई सुव्रता और क्षान्ति नामक आर्यिकाओं से पूछती है- "गुणों के समूह से शोभित आप दोनों देवियाँ प्रतित हैं। इसका क्या कारण है ?" आदरणीया कहती है-हे देवी, पूर्वजन्म में हम दोनों सौधर्म स्वर्ग के इन्द्रों की देवियों थीं। हम दोनों जिनपूजा में लीनबुद्धि होने के कारण नन्दीश्वर द्वीप के लिए गयीं। वहाँ मन के विरक्त हो जाने से अनुरागपूर्वक एक-दूसरे ने आपस में कहा कि हम पुनः मनुष्यजन्म प्राप्त करेंगी, तो हम दोनों तपश्चरण करेंगी। दोनों ने हाथ में हाथ (16) 1. AP असोयदत्त; BS यसोयदत्त। 2. 5 घणवत्तही। 5. AP "पंकयकयमत्तउ। 4. B दुछिबि । 5. APS लएवि। 6. Als. परमेट्ठहो against Mss. 7. AP णिवडिउ बंधु कणिग्रहो; Als. पिबडिउ परू। 1. A परिमगु घणु । 9. APLE. "खसिय। 10. AP णियतिए। 11. B पुत्रिय दुग्गंधा पणवतिए in second hand. 12. B मिष्णि विखुलियाउ गुणनणकड। 13. APS विरु। 14.5"भ। 15. A जिबद्ध।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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