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92.13.14
महाकइपुप्फयंतविरयत महापुराणु
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तं अवलोइचि सीरिहि रुण्णउं गरुडाहु' किं इसियउ सप मं छुडु जरकुमारु एत्थाइउ घाइ" ण मरइ कण्हु भडारउ एउ भगतु' पेउ सो पहाण देवंग वत्थई परिहावइ मुयउ तो वि जीवंतु व मण्णइ कुंकुमचंद के मंड देवें सिद्धत्यें संबोहिउ छम्मासहिं महियलि ओयारिउ सुहिविओयणिव्वेएं लइयउ अच्छरकरचालियचलचामरु
तुज्झु वि तणु किं सत्यें भिण्णउं । अहवा किं फिर एन वियये। तेण महारउ बंधवु घाइउ | दुद्दमदाणबिंदसंघारउ ! सोयाउरु उ काई मि जाणइ । भूसणेहिं भूसइ भुंजावइ । जणभासिउं ण किं पि आयण्णा । खंधि चडाविवि महि आहिंडइ । थिउ बलएउ समाहिपसाहिउ । विटु सइ तेण सक्कारिउ ।
मिणा पणविचि पावइयउ । सो संजायउ माहिंदामरु ।
घत्ता - आयणिवि महुसूयणमरणु जसधवलियजयमंडव । गय पंच विसिरिणेमीसरहु सरणु पट्टा' पंडव || 13 ||
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यह देखकर बलराम रो पड़े- "क्या तुम्हारा भी शरीर शस्त्र से आहत हो गया ? क्या गरुडराज को साँप ने काट खाया ? अथवा इस विकल्प से क्या, शायद जरत्कुमार यहाँ आया है और उसने मेरे भाई को आहत किया है। दुर्दम दानवेन्द्र का संहार करनेवाला मेरा भाई आदरणीय कृष्ण आहत होने से नहीं मर सकता।" यह कहते हुए वह उस प्रेत को स्नान कराते हैं। शोक से व्याकुल वह कुछ भी नहीं जानते । वह उसे देवांग वस्त्र पहिनाते हैं। आभूषणों से भूषित करते हैं, भोजन कराते हैं, वह मर चुके हैं तो भी जीवित के समान मानते हैं। लोगों के कहे हुए को बिल्कुल भी नहीं सुनते। केशर चन्दन के लेप से लेप करते हैं, कन्धों पर चढ़ाकर धरती पर घूमते हैं। तब सिद्धार्थदेव के द्वारा सम्बोधित होने पर बलभद्र समाधि से शोभित हुए (समाधि ग्रहण की ) । छह माह होने पर उन्होंने देव को कन्धे से उतारा और तब अपने इष्ट विष्णु का ( कृष्ण का ) उन्होंने दाह संस्कार किया। सुधीजन के वियोग से विरक्त उन्होंने श्री नेमिनाथ को प्रणाम कर दीक्षा ग्रहण कर ली । अप्सराओं से चालित है चंचल चामर जिसके लिए ऐसे वह माहेन्द्रस्वर्ग के देव हो गये।
धत्ता - श्रीकृष्ण की मृत्यु सुनकर अपने यश से जगरूपी मण्डप को धवलित करनेवाले पाँचों पाण्डव भी गये और श्री नेमिनाथ की शरण में जा पहुँचे ।
(19) 1. AS सौरि, P सीरें। 2. B गुरु & B सिउ APS बंधु वि पाइ5. APS चाय। B. P एम १ घणंतु कण्डु तौ ॥ B महुसवण महसूप पड़ा।