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92.11.11]
महायइपुष्फयंतविरयउ महापुराणु
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घत्ता-आरूसिवि पिसुणे मुक्क सिहि 'पावेप्पिणु सुरदुग्गइ।
धवलहरधवलधयमणहरिया खणि दट्टी" दारावइ ॥10॥
सयणमरणरुहसोएं' भरियउ सहुँ बलएवं लहुं णीसरियउ। होउ होउ दिव्याउहसिक्खड। पोरिसु काई करइ भग्गक्खइ। ण' धय ण छत्त ण रह णउ गयवर उ किंकर 'चलंति णउ चामर । देहमेत सावयभीसावणु बे ण्णि वि भाय पइट्ठ महावणु' । चक्कि बिडवितलि सुत्तु तिसायउ सीरि सलिलु पक्लिोयहुं धाइउ । तहि अबसार हयदइवें" रुद्धउ जरकुमारभिल्लें। हरि विद्धउ । जइ वि जीउ दुग्गई आसंघइ तो वि ण णियइ को वि जगि लंधइ । मुउ गउ पढमणरयविवरतरु सोक्खु णकासु वि मुयणि णिरंतरु। जलु लएबि तक्खणि पडियाएं पसरियमोहतिमिरसंघाएं। घत्ता-खयकालफणिदें कवलियउ महि णिवडिउ णिच्चेयणु।
बोल्लाविउ मायरु हलहरिण माहउ6 मउलियलोयणु ||1||
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पत्ता-देवों की दुर्गति पाकर, उस दुष्ट ने क्रुद्ध होकर आग फेंकी। और, धवल गृहों तथा धवल ध्वजों से सुन्दर द्वारावती एक क्षण में जलकर खाक हो गयी।
स्वजनों के मरने से उत्पन्न शोक से भरे हुए श्रीकृष्ण, बलदेव के साथ शीघ्र निकल गये। दिव्यायुधों से शिक्षित रहे, भाग्य के क्षय होने पर पौरुष क्या कर सकता है ? न ध्वज, न छत्र, न रथ, न गजवर, न किंकर, और न ही चमर चलते हैं। शरीरमात्र वे दोनों भाई श्वापदों से भयंकर महावन में प्रविष्ट हुए। चक्रवर्ती प्यास से व्याकुल होकर वृक्ष के नीचे सो गये। बलभद्र पानी देखने के लिए दौड़े। उस अवसर पर हतदैव से रुद्ध, जरतकुमार भील के तीर से हरि घायल हो गये। यदि जीव दुर्ग में भी आश्रय ले ले, तब भी विश्व में नियति का उल्लंघन कोई नहीं कर सकता। मरकर वह, प्रथम नरक के बिल में गये। इस संसार में निरन्तर सुख किसी को नहीं मिलता। बलभद्र जल लेकर तत्काल वापस आये। बढ़ रहा है मोहान्धकार का समूह जिनमें, ऐसे
यत्ता-बलराम ने क्षयकालरूपी नाग से कवलित धरती पर अचेतन पड़े हुए, मुकुलित-नयन भाई माधव को बुलाया।
lti. P•अइयणोहरिय। 17 दिए।
(11)। AP 'मराभवसोएं। 2. धण यण ठत्त ण रह गउ गयबर: पं धय ण छत्त ण गयबर । 3. B किंकिर । 4. AP चलाते चापरधर । 5. 5 "मेत्तु । । । भाइ।7.11वणे। B. APS तिसा। 9. सीरि वि सलिलु पलोया धाइओ।
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