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महाकइपुप्फयंतविरयउ महापुराण
E92.9.12 पत्ता-कालें जंतें थिरथोरकर" रणि पल्हत्थियगयघडु । पत्येण सुहद्दहि संजणिउ सिसु अहिअण्णु महाभडु ॥9॥
(10) अवरु' वि मुहमरुथियमत्तालिहि सुय पंचाल' जाय पंचालिहि। पुणु वि भुयंगसेणपुरि पविसणु' कियउं तेहिं कीअयणिण्णासणु। मायावियरूयाई धरेप्पिणु पुणु' विराडमंदिरि णिवसेप्पिणु। अरिणरवई गाय सर घालधि कु लगिदि गांउलाई णियत्तिवि। पुणु कुरुखेत्ति पवडिवगोरव पंडुसुएहि परज्जिय कोरच। अखलियपरिपालियहरियाणउ जाउ जुहिट्ठिलु देसहु राणउ। थिउ रायाणुवट्टि" गुणवंतउ भायरेहिं सुहु' सिरि भुंजतउ । बारहवरिसई णवर पउण्णई गलियई पंकयणाहहु पुण्णई। वणघल्लियमइराइ2 पमत्तहिं! मयपरवसहिं पघुम्मिरणेत्तहिं। सिसुकीलारएहिं संताविउ रायकुमारहिं रिसि रोसाविउ।। सो दीवायणु छुडु छुडु आयउ मुउ भावणसुरु" तक्खणि जायउ ।
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घत्ता-समय बीतने पर, अर्जुन ने सुभद्रा से स्थिर स्थूल हाथवाला, गजघटा का संहार करनेवाला महान् योद्धा शिशु अभिमन्यु को उत्पन्न किया।
(10) और भी, जिसके मुख-पवन में मतवाले भ्रमर स्थित हैं, ऐसी द्रौपदी से पांचाल नामक पाँच पुत्र हुए। फिर उन्होंने भुजंगशैलपुर में प्रवेश कर कीचक का वध किया। फिर मावावी रूप धारण कर तथा विराट के भवन में निवास कर, फिर शत्र राजा को तीर मारकर, तथा जीतकर, पीछे लगकर, लौटकर और गोकल को लेकर, फिर कुरुक्षेत्र में बढ़ा हुआ है गौरव जिनका ऐसे कौरवों को पाण्डुपुत्रों ने पराजित किया। अस्खलित रूप से परिपालन किया है 'हरियाणा' का राज्य जिसने, ऐसा युधिष्ठिर देश का राजा हो गया। राज्य का अनुगामी, गुणवान्, भाइयों के साथ सुख और ऐश्वर्य का भोग करता हुआ वह रहने लगा। पूरे बारह वर्ष बीत गये और श्रीकृष्ण का पुण्य नष्ट हो गया। वन में बनायी गयी मदिरा से प्रमत्त, मद से परवश घूमती हुई आँखोंवाले, शिशुक्रीड़ा में रत राजकुमारों के द्वारा मुनि सताये गये और झुद्ध किये गये वही द्वीपायन जो अभी-अभी आये हुए थे, मरकर उसी समय भवनवासी देव हुए।
]]. A थिरयोगकरू । 12. APS अहिवण्ण।
(10)1.5 अवर। 2. BS पंचालु । ३. भुयंगसेल" मुयंगसल 14. P पइसणु। 5. क्यउं। 6. रुवाई। 7.Somits this foot. s. BAIS "गारवः PS "गउरय। 9. PS कउरख। 10. AP णायाणुयहिः B रायाणुवाई। 11. सउं। 12. ABPS वर्ण। 13. B पत्तहिं। 14. B भावणिःS भावणु। 15. P संजापर।