________________
92.9.1।।
[ 239
महाकइपुष्फयंतविरयउ महापुराणु धत्ता-तहिं अवसरि खलदुज्जोहणेण कवडे जूइ जिणेप्पिणु। णिद्धाडिय पंडव पुरवरहु सई थिउ पुहइ लएप्पिणु ॥8॥
(9) पुचपुण्णपदभारपसंगें
जउहरि' घल्लिय णट्ट सुरंगें। गय तहिं जहिं आढन्तु सयंवरु विविहकुसुमरयरंजियमहुयरु'। मिलिय अणेय राय मउडुज्जल' चमरधारिचालियचामरचल।। पहपंसुल पंथिय छुडु आइय ते पंच वि कण्णाइ पलोइय। दइवें लोयवाला णं ढोइय णं वम्महसरगुण संजोइय। सिद्धत्थाइ राय अवण्णिवि कामु व दिव्यधणुद्धरु' मण्णिवि। पत्थु सलोणु विसेसें जोइउ तहि इइवें भत्तारु णिओइउ। पित्त सदिट्टि माल तहु उरवलि लच्छीकीलापंगणि पविउलि। ता हरिसिय णीसेस णरेसर पहिय पणच्चिय उब्भिवि णियकर। जयजयसदें 'णरि पइट्ठहिं जिणअहिसेयपणामपहिहिं । कालु जंतु बहुरायविणोयहिं णउ" जाणइ भुंजेवि य भोयहिं।
10
पत्ता--उस अवसर पर दुष्ट दुर्योधन ने जुए में कपट से जीतकर पाण्डवों को नगर से बाहर निकाल दिया और पृथ्वी पर अधिकार कर स्वयं स्थित हो गया।
पूर्वपुण्य के प्रभार से लाक्षागृह में डाले गये, वे सुरंग से भाग निकले। वे वहाँ पहुँचे जहाँ विविध कुसुमरज से शोभित हैं मधुकर जिसमें, ऐसा स्वयंवर हो रहा था। मुकुटों से उज्ज्वल चमर धारण करनेवाले के द्वारा संचालित चामरों से चंचल अनेक राजा आकर मिले। पथ की धूल से धूसरित, शीघ्र आये हुए वे पाँचों पथिक भी कन्या ने देखे, मानो दैव ने लोकपाल दिये हों। मानो कामदेव के बाण चढ़ा दिये गये हों। सिद्धार्थ आदि राजाओं की उपेक्षा कर, दिव्यधनुर्धारी (अर्जन) को कामदेव के समान समझकर, (कन्या ने) सुन्दर अर्जुन को विशेष रूप से देखा। दैव ने ही उसका पति नियोजित कर दिया था। उसके लक्ष्मी की लीला के प्रांगण और विशाल उरतल पर, उसने अपनी माला और दृष्टि डाल दी। इससे समस्त राजा प्रसन्न हो उठे। वे पथिक दोनों हाथ उठाकर नाचने लगे। जय-जय शब्द के साथ नगर में प्रवेश करते हुए तथा जिनेन्द्र भगवान् के अभिषेक और प्रणाम से प्रसन्न होते हुए, बहुराग विनोदों और भोगों के कारण भोगकर भी उन्होंने जाते हुए समय को नहीं जाना।
5. Bखा । 6. BP जूएं।
(9) 1.A जऊहरे: UPS जहरे। 2. सुतुंगें। 3. Rs कुसुमरसरोजय" । 1. UPजलु। 5.B'चलु । 6. P लोइयथाल17.P दिब्बु । 8. AB "पंगणि; अंग" | 9. A "पणामअद्विहिं। 10. HAS पट आणिज्जइ भुजियभोयहिं।