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________________ 238 । महाकइपुष्फयंतविरयऊ महापुराणु [92.7.7 वम्महु संभउ' रिसि अणुरुद्धउ तवजलणे दंडेिवि' मयरद्धउ । तिण्णि वि उज्जयंतगिरिवरसिरि महुरमहरणिग्गयमहुयरगिरि। केवलणाणु विमलु उप्पाइवि किरियाछिण्णु झाणु णिज्झाइवि। घत्ता-गय मोक्खहु णेमि सुरिंदथुउ णिम्मलणाणविराइउ । विहरेप्पिणु बहुदेसंतरई पल्लवविसयह आइउ ॥7॥ 10 (8) बलएवं पुच्छिउ सुरसारउ कपिल्लिहि परिहि णरपुंगमु । दढरह घरिणि पुत्ति तह दोवइ । सा दिज्जइ कहु मंतु पमंतिउ देविल घरिणि पुत्तु जाणिज्जइ अबरें भणिउं भीमु भडकेसरि । दिज्जइ तासु धूय परमत्थे तो एयहि तियपटु' णिबन्झइ । सुयहि सयंवरविहि मंडिज्जइ जो रुच्चइ सो माणउ इच्छइ पंडवकह वज्जरइ भडारउ । दुमउ' णाम महिवइ सुहसंगमु । जा सोहग्गें कामु वि गोवइ । चंदु णाम पायणधुरि खत्तिउ। इंदवम्मु तहु सुंदरि दिज्जइ। जो आहवि घल्लइ णहयलि करि। अवरु भणइ जइ परिणिय पत्थे। अपणु भगइ महुं हियवइ सुज्झइ। केत्तिउं हियउल्लउँ खंडिज्जइ। दुज्जण कि करति किर पच्छा। महादेवियाँ भी दीक्षित हो गयीं। प्रद्युम्न, शम्भव और मुनि अनिरुद्ध तप की ज्वाला में कामदेव को दण्डित कर, तीनों ही गिरनार पर्वत के शिखरों पर, जिनमें मधुकरों की मधुर-मधुर ध्वनि हो रही थी, घातिया कर्मों का नाश करनेवाला ध्यान करके, विमल केवलज्ञान को उत्पन्न कर, छत्ता-मोक्ष गये। देवेन्द्रों से संस्तुत तथा पवित्रज्ञान से विराजित नेमिनाथ अनेक देशान्तरों में भ्रमण करते हुए पल्लवदेश में आये। तब बलराम के द्वारा पूछे जाने पर सुरश्रेष्ठ आदरणीय पाण्डवकथा कहते हैं-कम्पित्ला नगरी में नरश्रेष्ठ शुभसंगम द्रुपद नाम का राजा था। उसकी गृहिणी दृढ़रथ थी और पुत्री द्रौपदी जो सौभाग्य में काम को भी क्रुद्ध कर देती थी। वह किसे दी जाये-इस पर मन्त्री ने परामर्श दिया कि पोदनपुर में चन्द्र (चन्द्रदत्त) नाम का क्षत्रिय है। उसकी गृहिणी देवला है। उसका पुत्र इन्द्रवर्मा जाना जाता है, उसे सुन्दरी दी जाये। किसी दूसरे ने कहा- योद्धाओं में श्रेष्ठ भीम है, जो युद्ध में हाथी को आकाश में उछाल देता है। वास्तव में कन्या उसे देना चाहिए। दूसरा कहता है यदि अर्जुन से विवाहित हो तो इसे पट्टानी का पट्ट बाँधा जाएगा। एक और कहता है-मेरे मन में तो यह सूझ पड़ता है कि कन्या की स्वयंवर विधि की जाये। हृदय को कितना खण्डित किया जाए ? जो अच्छा लगता है, मनुष्य उसकी इच्छा करता है, बाद में दुर्जन कुछ भी करते रहें। 5. AB संयूरिसि। 5. APS अणिरुद्धछ। 7. ABPS डहेवि। 8.5 "ठिण्ण। (8) 1. AP दुयउ णाम: 5 गुमर। 2. BS अवरि । 3. AB भीममडु । 4. B तृयपटु ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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