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________________ 92.761 महाकइपुष्फयंतविण्यउ महापुराणु [ 237 विमलिं' देवि उम्मोहेव वणि सिद्धत्थे संबोहेवउ। दइगंबरिय दिक्ख पालेप्पिणु कुच्छिउ गरसरीरु मेल्लेप्पिणु। माहिंदइ अमरतु लहेसहि पुणरवि एवं खेत्तु आवेसहि। होसहि सिरिअरहंतु भडारउ दुम्महबम्महवम्मवियारउ। इय णिसुणिवि दीवाय उगवरु . हु उ १५ 145 महुमहमरणायण्णणसंकिङ थिउ जाइवि णियदइवें ढकिउ । जरकुमारु" विलसियपंचाणणि कोसंबीपुरिणियडइ काणणि। भूसिउ गुंजाहरणविसेसें संठिउ सुंदरु णाहलवेसें। घत्ता-मिच्छत्तें "मलिणीहूयएण दढणरयाउसु बद्धउं। महुमहणे पुणु संसारहरु जिणवरदसणु लद्धां।।16।। पसरियसमयभत्तिगुणरुंदै वेज्जबच्चु कयउं गोविंदें। सत्तुय काराविय णियपुरवरि' ओसह तें दिण्णउँ मुणिवरकरि । तित्थयरतु णामु तेणज्जिउं जं अमरिंदरिंदहिं पुज्जिउं। इय णिसुणिवि 'माहउ आउच्छिवि णासणसीलु सबु जगु पेच्छिवि । पज्जुण्णाइ पुत्त वउ लेप्पिणु थिय णिग्गंध कलुसु मेल्लोप्पिणु। रुप्पिणि आइ करिवि महएविउ अट्ठ वि दिक्खियाउ 'सियसेविउ । धूमोगे। विमलादेवी के द्वारा तुम मोह छोड़ोगे और वन में सिद्धार्थ देव तुम्हें सम्बोधित करेगा। तुम दिगम्बर दीक्षा का परिपालन कर तथा कुत्सित मानव-शरीर छोड़कर, माहेन्द्र स्वर्ग में देवत्व प्राप्त करोगे। फिर इसी क्षेत्र में आओगे। तुम दुर्दमनीय काम के मर्म का नाश करनेवाले भट्टारक श्री अरहन्त बनोगे।" यह सुनकर द्वीपाचन मुनिवर अन्य उत्तम देशान्तर चले गये। कृष्ण के मरण के श्रवण से आशंकित, अपने भाग्य से आच्छादित जरत्कुमार जाकर कौशाम्बीपुर के निकट सिंहों से विलसित वन में स्थित हो गया। धुंधचियों के आभूषणों से भूषित वह सुन्दर भीलरूप में निवास करने लगा। पत्ता-मिथ्यात्व से मलिनीभूत कृष्ण ने नरकायु का दृढ़ बन्ध कर लिया। फिर उन्होंने संसार का नाश करनेवाले जिनवर का दर्शन प्राप्त किया। जिनमत में प्रसारित भक्ति गुण से विशाल गोविन्द ने वैयावृत्ति की। श्रीकृष्ण ने अपने नगर में चूर्ण बनवाया और उन्होंने मुनिवरों के हाथ में औषधि दी। उन्होंने तीर्थंकरत्व का अर्जन किया जो देवेन्द्रों और मानवेन्द्रों के द्वारा पूज्य है। यह सुनकर तथा श्रीकृष्ण से पूछकर समस्त संसार को क्षणभंगुर समझकर, प्रद्युम्न आदि पुत्र व्रत लेकर, क्लेशभाव छोड़कर, निर्ग्रन्थ हो गये। रुक्मिणी आदि सहित, लक्ष्मी से सेवित आठों 6. APS चिपलें देखें। 7. A सम्मोएवर; P उम्मोहेयर। 8. दीपायणु। ५. 5 जायवि। 10. B कुमार। 11. B मिलिणीहुयएण। 12. P°दसण । ___(7)1. D णियपुरि । 2. 5 दिपणा । 3. 5 पाहतु। 4. B सूप।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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