________________
236 ]
महाकइपुप्फयंतबिरयउ महापुराणु
णवभासहिं लायण्णरवण्णउ जंबावइहि" पउण्ण मणोरह जणणिजणियपिसुत्तें दारुणु संभवेण अवमाणिवि वित्तउ पुष्पविते सुमहचार सच्चहामदेचिइ " गुणकित्तणु
संभव 2 णाम पुत्तु उप्पण्णउ । सुय वडति महंत महारह । अवरहिं दिवसि जाय कोवारुणु । भाणु भणियसरजाइहि" जित्तउ । मुक्कउ झत्ति रोसपब्भारउ । पडिवण्णउं रुप्पिणिसयणत्तणु ।
धत्ता - इय णिसुणिवि मुणिगणहरकहिउं सीरपाणि पुणु भासइ । अज्ज वि कइ वरिसई महुमहणु देव रज्जु भुंजेसइ ॥5॥
(6)
दसदिसिवहपविदिण्णहुयासें मज्जणिमित्रों दारावर पुरि एवं भविस्सु देउ उग्घोसइ पढमणरs सिरिहरु णिवडेसइ पच्छइ पुणु तित्थयरु हवेसइ तुहुं छम्मास जाम सोआयरु '
णासेसइ दीवायणरोसें ।
जरणामें वणि णिहणेवउ' हरि ।
बारहमइ संवच्छर होस । एक्कु समुद्दोवमु जीवेसइ । एत्थ खेत्ति कम्पाइं डसइ । हिंडेसहि सोयंत भायरु ।
[ 92.5.8
10
15
5
गया। नौ माह में लावण्ययुक्त सुन्दर शम्भव नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ । जाम्बवती की कामना पूरी हुई । दोनों (जाम्बवती का शम्भव और सत्यभामा का सुभानु) महान् महारथी पुत्र बढ़ने लगते हैं। माँ के द्वारा की गयी दुष्टता के कारण दूसरे दिन वह क्रोध से लाल हो गया । शम्भव ने उसे अपमानित करके छोड़ दिया । भानु भणित स्वर जाति विवादों में जीत लिया गया। फिर उसे (शम्भव को ) पुण्यविशेषवाला और महान् सुनकर उसने क्रोध के प्रभार को छोड़ दिया । सत्यभामा देवी ने गुणकीर्तन और रुक्मिणी का स्वजनत्व स्वीकार कर लिया ।
पत्ता - गणधर मुनि के इस कथन को सुनकर बलभद्र पुनः कहते हैं- "हे देव ! श्रीकृष्ण अभी कुछ वर्ष और राज्य का उपभोग करेंगे।
(6)
जिससे दसों दिशाओं आग फैल गयी है, ऐसे द्वीपायन मुनि के क्रोध से शराब के कारण द्वारिका नगरी नष्ट होगी और वन जरतकुमार के द्वारा कृष्ण मारे जाएँगे ।" देव घोषणा करते हैं कि यह वारहवें साल में होगा । श्रीकृष्ण पहले नरक में जाएँगे और एक सागरपर्यन्त न जीवित रहेंगे। बाद में फिर तीर्थकर होंगे। और इस क्षेत्र (भरतक्षेत्र) में कर्मों का नाश करेंगे। तुम छह माह तक, भाई का शोक करते हुए, शोकातुर
IL.P लावण् । 12. B संभयणाम: P जंनावइहे पुत्तु उप्पण्णउ 13. AP ते वेण्णि विपदण्णमणोरह। 14. BK "जायहिं । 5. AP पुणेयि । 16. APS सख्यभाम" । 17. P अज्जु ।
(6) 1 P हिन्चर 12. ABPS शिवसेसह । 3. AP एकु छेति । 4. AS सोयाउरु P सोयायरू। 5. B सोएत।