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________________ 92.3.03 [233 महाकइपुष्फयंतविरयउ महापुराणु तं णिसुणिवि विज्जासामत्थे देवें उच्छुसरासणहत्यें। वम्महेण जणकोंतलहारिहि __ अवरु सहाउ विहिउ छुरधारिहि। एंत अणंत वि णं जमदूएं तज्जिय भिच्च जणदणलए। धत्ता-पसरतें गयणालग्गएण रूसिवि एंतु दुरंतउ। अइदीहें पाएं ताडियउ जरु णामेण महंतउ ॥2॥ 15 मेसें होइवि' हउ सपियामहु हलिहि भिडिउ होएप्पिणु महमहु । रुप्पिणिरूउ अण्णु किंउ तणि णिहिय विमाणि' णीय गयणंगणि । दामोयरु ससेण्णु कुढि लग्गउ णिवजालेण सो वि णिवु भग्गउ । जयसिरिलीलालोयपसण्णहं को पडिमल्लु एत्यु कयपुण्णहं। दर हसंतु सुरणरकलियारउ तहिं अवसरि आहासइ णारउ। कामएउ गरणयणपियारउ एम्ब वियंभिउ पुत्तु तुहारउ । जं कल्लोलहु' उत्तंगतणु तं महुमह सायरहु पहुत्तणु जं तणयह पयाउ खलदूसणु तं माहव कुलहरहु विहूसणु। हरि हरिवंससरोरुहणेसरु तं णिसुणिवि हरिसिउ परमेसरु। केश माँग रहा है। यह सुनकर इक्षुदण्ड का धनुष जिसके हाथ में है, ऐसे विद्या की सामर्थ्यवाले कामदेव कुमार ने लोगों के केश काटनेवाले नाई का एक और सहायक नियुक्त कर दिया। कृष्ण के रूप में कुमार ने आते हुए मृत्यों को डाँट दिया, मानो यमदूत ने डाँट दिया हो। घत्ता-फैलकर आकाश से लगते हुए अत्यन्त लम्बे पैर से जर नाम के महान् व्यक्ति को ताडित किया। मेष बनकर, उसने अपने पितामह वसुदेव को आहत किया और कृष्ण बनकर बलराम से भिड़ गया। उसने रुक्मिणी का एक और रूप बनाया और उसे विमान में बैठाकर आकाश में ले गया। दामोदर सेना के साथ उसके पीछे लगा, परन्तु प्रद्युम्न ने नरेन्द्रजाल विद्या से उस नृप को भग्न कर दिया। विजयश्री के लीलालोक से प्रसन्न रहनेवाले पुण्य करनेवाले लोगों का प्रतिमल्ल इस संसार में कौन हो सकता है ? मनुष्यों और देवों में कलह करानेवाले नारद, उस अवसर पर घोड़ा मुसकाते हुए बोले-कि लोगों के नेत्रों के लिए प्रिय और कामदेव यह तुम्हारा पुत्र ही बड़ा हो गया है जो लहरों की ऊँचाई है। हे कृष्ण ! वही सागर का प्रभुत्व है। दुष्टों को दूषित करनेवाला पुत्र का जो प्रताप है, वही कुलधर का विभूषण है। हरिवंशरूपी कमल के लिए सूर्य परमेश्वर कृष्ण हर्षित हो उठे। प्रेम करनेवाले प्रत्येक पिता को पुत्र की साहसिक चेष्टाएँ 12. Pउचा13. P"सूये; 5 रूवें। (3) 1.5 होयदि। 2:5 होएवि तहिं। 3. 2 मुहमहुँP संमुहु। 4. AP विमाणमझे। 5. AP णिवबालेण: 5 नृवजालेण! 6, APS रणि। 6. B एव 5 एउं। 7. A कल्लोलु होउ तुंपत्तणु। BPS उतुंग 1 B. A हसिउ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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