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________________ 232 ] महाकहपुष्फयंतषिरया महापुराणु [92.1.13 तइयह सच्चभामणामकइ भाणु जणिउ महजित्तससंकइ। बिहि मि सहीउ गयाउ उविंदहु पासि पायपाडियरिउवंदहु' । धत्ता-ता तहिं हरिणा सुत्तुट्ठिएण पियपायंति बइठ्ठी। अम्हारी सिसुमिगलोयणिय" सहयरि सहसा दिट्ठी ॥1॥ (2) देवदेव रुप्पिणिहि' सुछायउ लखणवंजणच्चियकायउ। ताइ पवुत्तु पुत्तु संजायउ सं णिसुणिवि हरिसिउ महिरायउ। पढमपुत्तु तुहं चेय पोसिउ पडिवक्खहु मुहभंगु पदेसि । वइरिएण बड्डियअवलेवें णवर णिओ सि कहिं मि तुहं देवें। विमलसरलसयदलदलणेत्तहु जेट्ठउ' कमु जायउ सावत्तहु। 5 कलहंतिहिं वड्डियपिसुणत्तणि चिरु बोल्लिउं दोहि मि तरुणत्तणि। बिहिं मि पुत्तु जा पढमु जणेसई सा अवरहि धम्मिल्ल' लुणेसइ । मंगलधवलथोत्तहयसोत्तइ । पुत्तविवाहकालि' संपत्तइ। हरिसें अज्जु सवत्ति विसट्टइ सुयकल्लाणण्हाणु घरि वट्टइ। एहु ताहि आएसें वग्गइ णाविउ मज्झ सिरोरुह मग्गइ। 10 मेरा पुत्र उत्पन्न हुआ था, तभी अपने मुँह से चन्द्रमा को जीतनेवाली सत्यभामा ने भानुकुमार को जन्म दिवा था। हम दोनों सखियाँ शत्रुओं को अपने पैरों पर गिरानेवाले श्रीकृष्ण के पास गयीं। घत्ता-तब उस अवसर पर प्रिय के पैरों के अन्त में बैठी हुई, हमारी शिशु मृगनयनी सखी को सोकर आते हुए कृष्ण ने सहसा देखा। उसने (सत्यभामा ने) कहा-'हे देवदेव ! रुक्मिणी के लक्षणों और सूक्ष्म चिह्नों से अंकित शरीर और सुन्दर कान्तिवाला पुत्र उत्पन्न हुआ है।" यह सुनकर महाराज प्रसन्न हुए और उन्होंने तुम्हीं को पहला पुत्र घोषित किया। इससे प्रतिपक्ष का मुख फीका पड़ गया। बढ़ रहा है गर्व जिसका ऐसा पूर्वजन्म का वैरी देव तुम्हें कहीं ले गया। तब विमल और सरल कमल के समान नेत्रोंवाली सपत्नी सत्यभामा के पुत्र का क्रम जेठा हो गया। जिसमें दुष्टता बढ़ रही है ऐसे तारुण्य में एक बार झगड़ते हुए हम दोनों ने बहुत पहले यह तय किया था कि हम दोनों में से जिसके पहले पुत्र होगा, वह दूसरे की चोटी काटेगी। मंगल और धवल स्तोत्र-गीतों से कानों को आहत कर देनेवाले पुत्र का विवाह-काल आने पर सौत हर्ष से विशिष्ट हो रही है। आज घर में उसके पुत्र का स्नान-कल्याण है। उसी के आदेश से यह इतरा रहा है और मेरे 10. A सच्चहाम" | 11. B विहं। 12. S पापपडिय। 19.8°मृग । (2)1.A रुप्पिणिसुच्चायउ।2. विजण 19. A पदरसिङ । 4. A जेट्टकम्मु पालिउ सानत्तहो; BSAID. जेट्टाकम्मु जाउ सायत्तहो; जेवकमु पालिउ सावत्तहो; Als. suggests toread जेहामु गायउ सावत्तहो। 5. वहिए। 6.5 पढम।7. Bघमिल्लु: P धम्मेलूलु, धम्मेल्ल 18. RS "गित्त 19.AP णियत्तणुरुहवियाहे आढत्तए। 10. D सयित्ति। 1.5 पहाविउ ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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