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________________ . : ५.० : 92.L.12| महाकइपुष्फयंतविरयउ महापुराण [ 231 [231 दुणउदिमो संधि पसरतणेहरोमचिएण' देवें रइभत्तारें। कमकमलई जणणिहि णवियाई सिरिपज्जुण्णकुमारें ॥ ध्रुवकं ॥ चारादि जहिं अच्छिउ तं पुरु घरु देसु वि मुहकहरुग्गयसुमहुरवायहि पुत्तसणेहु जणिउ णिरु णिभरु दुज्जणु हरिसें कहिं मि ण माइउ तेण समीहतें दूसह कलि भाणुकुमारहु पहाणिमित्तें पुच्छिय णियमारि कंदप्ये णील णिद्ध" भंगुर सुहकारा' तं णिसुणिवि देवीइ पवुत्तउं "दिव्यपुरिसलक्खणसंपण्ण' पुणु वित्तंतु कहिउ णीसेसु वि। बालकील दक्खालिय मायहि । तहिं कालइ परियाणिवि अवसरु। छुरविहत्यु चंडिलउ पराइट। मग्गिय मयणजणणिअलयावलि। तं णिसुणिवि णिरु विभियचित्तें'। कि पवुत्तु एएण सद। कि मग्गिय धम्मिल्ल तुहारा। पव्वकम्मु परिणवइ णिरुत्तउं। जइयतुं तुहं महुं सुउ उप्पण्णउ। 10 बानवेवी सन्धि फैलते हुए स्नेह से रोमांचित, रति के स्वामी देव श्रीप्रद्युम्नकुमार ने माता के चरणकमलों में प्रणाम किया। __वह कुमार जहाँ-जहाँ रहा, उस घर, देश और नगर का कुल वृत्तान्त उसने सुनाया। अपने मुखरूपी कुहर से मधुर वाणी चोलनेवाली माता के लिए उसने बाल-क्रीड़ाएँ दिखायीं। उसे पूर्ण पुत्रस्नेह हो गया। उसी समय अवसर जानकर, एक दुर्जन चण्डाल हर्ष से फूला न समाता हुआ, हाथ में छुरा लेकर वहाँ पहुँचा । दुःसह कलह की इच्छा रखनेवाले उसने कामदेव (प्रद्युम्न) की माता की अलकावलि माँगी, भानुकुमार के स्नान के लिए। सुनकर, अत्यन्त आश्चर्यचकित चित्त होकर कामदेव ने अपनी माता से पूछा कि दर्प के साथ इसने क्या कहा ? इसने स्निग्ध घुघराली शुभ करनेवाली तुम्हारी अलकावली क्यों माँगी ? यह सुनकर देवी ने कहा कि पूर्वजन्म का कम निश्चित रूप से परिणमित होता है। दिव्य पुरुष के लक्षणों से युक्त जब तू (1) I. Aदेहरोमायाला, इज्जण। 1. Somis this lionm..विडिय"। . 1 पत्त गईएण सदप्पे : i. B पिटु । TAPS सुहगारा। पिम् । .Aसगणर। K.
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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