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[91.22.12
महाकष्टपुष्फयंतविरयर महापुराणु घत्ता-जणणीथपणेण सुर मिलंतु' अहिसित्तु किह ।
गंगातोएण पुष्फयंतु पह भरहु जिह ॥22॥
इय महापुराणे तिसद्विमहापुरिसगुणालंकारे महाकइपुष्फयंतबिरइए महाभध्वभरहाणुमण्णिए महाकच्चे रुप्पिणिकापरावसंजोउ णाम
"एक्कणयदिमो परिष्ठेउ समत्तो ॥1॥
घत्ता-माँ के स्तन्य से मिलता हुआ पुत्र इस प्रकार अभिषिक्त हो गया, जिस प्रकार गंगाजल से पुष्पदन्त प्रभु भरत को (कर देते है)।
त्रेसठ महापुरुषों के गुणालंकारोंवाले इस महापुराण में महाकवि पुष्पदन्त द्वारा विरचित तथा महाभष्य भरत द्वारा अनुमत इस काय्य का रुक्मणी-कामदेव-संयोग नाम का
इक्यानवेवा परिच्छेद समाप्त हुआ।
1.
ता
हि ॥ मिलन in second haired. 5. Syषदंत-11. स्वपिणि'17.AN एकागवदिमो; B एकणयदिपो; एकाणउदिमो।