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महाकइपुष्फयतविरयउ महापुराणु
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ता सच्चहाम" पभणइ सुदुछ बंभणु होइवि4 रक्खसु पइछु । घत्ता-ता भासइ भटु देण' ण सक्कइ भोयणहु। किह" दइवें जाय एह भज्ज णारायणहु ॥21॥
( 22 ) पुणु गयउ झसद्धउ बद्धणेहु खुल्लयवेसें णियजणणिगेह । हउं भुक्खिउ रुप्पिणि गुणमहंति दे देहि भोज्जु सम्मत्तवंति। ता सरसभक्खु उक्खित्तगासु णाणातिम्मणकयसुरहिवासु । जेमाविउ तो वि ण तित्ति जाइ हियउल्लइ देविहि गुणु जि थाइ। कह कह व ताइ पीणिउ विहासि विरएवि पुरउ लड्डुयह रासि। . विणु का कोडलगवाटल अवयारिउ महुरसमत्तभसलु । तक्खणि वसंतु अंकुरियकुरुहु कयपणयकलहु जणणियबिरहु । णारउ पुच्छिउ पीणत्थणीइ कोऊहलभरियइ रुप्पिणीइ। महं घरु को आयउ खयरु- देउ ता तेण कहिउं सिसु मयरकेउ। अवयरिउ माइ दे देहि खेळ ता कामें णिसुणिवि वयणु एउ। 10
दंसिउं सरूउ' णियमाउयाहि पण्हयपयपयलियथणजुयाहि। रसोई बनती जाती है, वह उसे चट करता जाता है। इस पर सत्यभामा कहती है-'यह दुष्ट राक्षस ब्राह्मण होकर घुस आया है।"
घत्ता-तब वह ब्राह्मण कहता है कि भोजन तक नही दे सकती ! भाग्य से यह नारायण की पत्नी कैसे बन गयी ?
(22) फिर प्रेम से बँधा हुआ वह कामदेव क्षुल्लक के रूप में अपनी माँ के घर गया (और बोला)-“हे गुणों से महान् ! सम्यग्दर्शन से युक्त रुक्मणि ! तुम मुझे भोजन दो, मैं भूखा हूँ।" तब परोसे गये हैं कौर जिसमें ऐसे नाना व्यंजनों की सुगन्धि से सुवासित सरस भोजन उसे खिलाया गया, तब भी उसकी तृप्ति नहीं हुई। वह देवी के गुणों की अपने मन में थाह लेना चाहता था। किसी प्रकार उसने लड्डुओं की राशि और सुन्दर पूरी बनाकर खिलायी जिससे उसे तृप्ति हुई। इतने में असमय में कोयल का मधुर कलरव होने लगा। मधुरस से मत्त भ्रमर गूंजने लगे और प्रणय-कलह करनेवाला, लोगों में विरह पैदा करनेवाला वसन्त तत्क्षण आ गया। तब पीन स्तनोंवाली कुतूहल से भरी हुई रुक्मणी ने नारद से पूछा-"मेरे घर कौन विद्याधर देव आया है ?" तो उसने कहा-"कामदेव-पुत्र अवतरित हुआ है। हे आदरणीया ! उसे आलिंगन दो।" जब कुमार ने यह सुना तो उसने पन्हाते हुए दूध से प्रगलित स्तनोंवाली अपनी माँ को अपना स्वरूप प्रकट कर दिया।
13. सच्चभाम। 14. Pण होई for होइवि। 15. AP दीण। 18. 5 किल।
(22) 1. APS "रोन": Bए । 2. BP वयस्टेउ। 5. 5 सरूदु।