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________________ 2281 [91.20.13 महाकइपुष्फयंतविरपर महापुराणु पत्ता-विज्जइ 'छाइवि णारउ गणि ससंदणउ । वाणरवेसेण आहिंडई मनहतण 2011 (21) दक्खालियसुरकामिणिविलासु सिरिसच्चहामकीलाणिवासु' । दिसविदिसचित्तणाणाहलेण उजाणु भग्गु मारुयचलेण। सोसेवि वावि झसमाणिएण सकमंडलु पूरिउ पाणिएण। थिरथोरकंधघोलंतकेस रहवरि जोत्तिय गद्दह समेस। जणु पहसाचिउ मणहरपएसि कामेण 'णयरगोउरपवेसि। पुरणारिहिं हियउ हरंतु रमइ पुणु वेज्जवेसु घोसंतु भमइ। हउँ छिण्णकण्णसंधाणु करमि वाहियउ तिव्ववेयाउ हरमि। भाणुहि णिमित्तु उवणियउ जाउ । विहसाविउ 'णिवकुवरीउ ताउ। पुणु सभाणुमायदेवीणिकेउ गउ बंभणवेसें मयरकेउ। घरि वइसारिउ सहुं बंमणेहिं "घियऊरिहिं लड्डुयलावणेहि। भुंजइ भोयणु केमा वि प धाइ आवग्गी जाम रसोइ खाइ। 10 घत्ता--विद्या के द्वारा रथ-सहित नारद मुनि को आकाश में आच्छादित कर दिया और वह कृष्णपुत्र स्वयं बन्दर के वेश में घूमने लगा। (21) सुर-बालाओं के विलास को दिखानेवाले तथा सत्यभामा के क्रीड़ानिवास स्वरूप उद्यान को दिशा-विदिशा में नाना फलों को फेंकती हुई चंचल हवा से उजाड़ दिया। बावड़ी को सोखकर, मत्स्यों के द्वारा मान्य जल को कमण्डलु में रख लिया। और अपने श्रेष्ठ रथ में स्थिर स्थूल कन्धों पर जिनके बाल फैल रहे हैं, ऐसे मेष सहित गधे को रथ में जीत लिया। नगर के गोपुर प्रवेश और उस सुन्दर प्रदेश में उसने लोगों का खूब मनोरंजन किया। वह नगर-स्त्रियों के हृदय का हरण करता हुआ रमण करता है, फिर अपने को वैध कहता हुआ घूमता है कि मैं कटे हुए कान-नाक जोड़ देता हूँ, तीव्र वेगवाली व्याधियों को नष्ट कर सकता हूँ। और जो कुमारी भानु के लिए ले जाई जा रही थी, कुमार ने उसे भी हँसा दिया। फिर कामदेव ब्राह्मण का रूप बनाकर भानु की माता सत्यभामा के भवन में गया। उसे घर में ब्राह्मणों के साथ बैठाया गया। घी से भरे लड्डू आदि व्यंजनों का वह भोजन करता है, परन्तु किसी प्रकार उसकी तृप्ति नहीं होती। जितनी (21) I. AP"सच्चथाम । 2. APS दिसिविटिसि" 13. APS बाबिउ। 4. Bणवरे।: Pपएसे। 6. AS बाहिउ; 7.5 नृव: B.AP सच्चा 5 सञ्चभाप 19.5 बम्हण । 10. APS पियऊर्गहें। 11. लठ्य'; लटु' सइइव | 12. A कैग ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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