SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 229
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 91.20.121 [ 227 महाकइपृष्फयंतविग्यउ महापुराणु यत्ता-संगरकंखेण कामहु केरउ णउ रहिउ। प्तिहिभूइपहूइ भवसंबंधु सब्बु कहिउ ॥१५॥ (20) ता भणइ मयणु भई माणियाइं चिरजम्मई' किह पई जाणियाई। ता भासइ णारउ मयमहेण अक्खिउं अरुहें विमलप्पहेण। ता बिपिण वि जण उवसमपसण एवं चवंत गयउरु पवण्ण। तहिं कुंदकुसुमसमदंतियाउ जाणिवि भाणुहि दिज्जतियाउ। कंकेल्लिपत्तकोमलभुयाउ दुजोहणपहुजलणिहिसुथाउ । वेहविवउ दमियउ तावियाउ मायारवेण हसावियाउ। जणु सबलु वि बिदभमरसविस?' गउ मयणु महुरमग्गें पयतु। कारावियमणिमयमंडवेहि महुराउर पंचहिं पंडवेहि। पारद्धी भाणुहि देहुं पुत्ति णं कामकइयवायारजुत्ति। तहिं धारय संरण पुलिदवसु आलकज्जलसामलकबिलकेसु। णीसेसकलाविष्णाणधुत्त खेल्लिवि' "खरियालिवि पंडुपुत्त । दारावइणयरि पराइएण कुसुमसरें कतिविराइएण। 10 वत्ता-संग्राम की इच्छा रखनेवाले नारद ने कामदेव के अग्निभूति प्रभृति समस्त पूर्वभव बता दिये, कुछ भी नहीं छिपाया। (20) तब कुमार कामदेव पूछता है-“मेरे द्वारा भोगे गये पूर्वजन्मों को आपने कैसे जान लिया ?" काम का नाश करनेवाले नारद ने कहा कि अरहन्त विमलप्रभ ने मुझे बताया था। शान्ति से प्रसन्न वे दोनों इस प्रकार वातचीत करते हुए गजपुर पहुँच गये। वहीं पर यह जानकर कि कुन्दकुसुम के समान दाँतोंवाली और अशोकपत्र के समान कोमल बाहुबालो दुर्योधन की पुत्री उदधिकुमारी भानुकुमार को दी जा रही है। उसने मायावी रूप बनाकर लोगों को खूब छकाया, सन्तप्त किया और हँसाया। समस्त लोग आश्चर्य-रस में डूब गये। कामदेव चला और मथुरा के मार्ग से जा लगा। मथुरा नगरी में मणिमय मण्डप बनानेवाले पाँचों पाण्डवों ने कुमार भान को पुत्री देना प्रारम्भ कर दिया, जो मानो काम के कैतव की मूर्तिमती युक्ति थी। वहाँ, भ्रमर और काजल के समान हैं काले बाल जिसके ऐसे उस कामदेव प्रद्युम्न ने भील का रूप धारण कर समस्त कलाविज्ञान की धूर्तताएं खेलकर तथा पाण्डु-पुत्रों को खिन्न कर, द्वारावती नगरी में पहुंचकर, कान्ति से शोभित, (20) I.A कर जम्मई। 2. P"पण . A "पहुजाणिति। 4.AP विभयरम.135 चिम्हयरस 15. खेलेथि। 6.A खलिपानियि। .A विबाइन रक। ४.
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy