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________________ 226 महाकइपुष्फयंतविरवर महापुराण [91.18.13 गउ तहिं जहिं थिउ सिरिरमणतणउ बोल्लाविउ तें किउ' तासु पण। णीसल्लु पोसिउं णियडु ढुक्कु आलिंगिउं दोहिं मि एक्कमेक्कु । उच्चाइवि सिल केसवसुएण अण्णस्थ घित्त कक्कसभुएण। घत्ता-कय वियलियपास ते खेचररायंगरूह। णिग्गय सलिलाउ दुज्जसमसिमलमलिणमुह" ॥18॥ (19) मयणहु सुमणोरहसारएण' तहिं अवसरि अक्खिउं णारएण। भो णिसुणि णिसुणि रिउदुब्बिजेय दारावइपुरवरि' पवरतेय' । "जरसिंधकसकरपाणहारित तुह जणणु जणदणु चक्कधारि । तहु पणइणि रुप्पिणि तुज्झु माय पत्तियहि महारी सच्च वाय। भो आउ जाहुं किं वयणएहिं णियगोत्तु णियहि णियणयणएहि । पणमियसिरेण" मउलियकरण ता भणिउ कालसंभवु सरेण । तुहुं ताउ महारउ गयविलेव ... वटवारिता" हा पई कम्म जेत. पयलंतखीरधारापणाल बीसरमि ण जाणे वि कणयमान। जं "दुभणिओ सि दुणियच्छिओ मि तं खमहि जामि आउच्छिओ सि। ता तेण विसज्जिउ गुणविसालु अणडुहसंदणि आरूटु बालु । कलहयरें सहुं चल्लिउ तुरंतु गयपुरु संपत्तउ संचरंतु। उसने उसे बुलाया और उसे प्रणाम किया। निःशल्य होकर पास पहुँचा, और दोनों ने एक-दूसरे का आलिंगन किया। कठोर बाहुवाले कुमार ने शिला उठाकर दूसरी जगह रख दी। घत्ता-बन्धन छूट जाने से, अपयश रूपी स्याही के मल से मलिन मुखबाले वे विद्याधर-पुत्र पानी से निकल आये। ( 19 ) सुन्दर कामनाओं की पूर्ति करनेवाले नारद ने उस अवसर पर कहा-"ओ शत्रुओं के लिए अजेय, प्रवरतेज तुम सुनो, द्वारिकापुरी में जरासन्ध और कंस के प्राणों का अपहरण करनेवाले चक्रधारी श्रीकृष्ण तुम्हारा पिता हैं। उनकी प्रणयिनी रूक्मणो तुम्हारी माँ है। तुम मेरी बात को सच मानो। शब्दों से क्या ? आओ चलें। अपने कुल को अपनी आँखों से देख लो।" तब हाथ जोड़कर और सिर से प्रणाम करते हुए कुमार कामं ने कालसम्भव विद्याधर से कहा- "हे देव ! तुम मेरे अहंकार रहित पिता हो। तुमने वृक्ष की तरह मुझे बड़ा किया है। दूध की धारा की प्रणाली बहानेवाली माँ कनकमाला को मैं नहीं भूल सकता। जो मैंने बुरा-भला कहा और देखा उसे क्षमा कर दें। तुमसे पूछकर मैं जाता हूँ।" तब, उनसे विप्तर्जित हो गुणों से विशाल कुमार वृषभरथ में जाकर बैठ गया। कलह करनेवाले नारद के साथ वह तुरन्त चला और विचरण करता हुआ गजपुर पहुंचा। 7. AIMS कर । 8. Bणि हक्क ।। ।। एक्कुपेक्छु । D. I. A खचतिवारूर: बपहिवामह। 12. AIPS मइलमुह । (19)। A "रहगाराएण। 2. AP विनेट । 3. 12 परि । 4. AP दिव्यतेत 5 परतेय । .. IP जरसिंधु': जन्तेंध। . खयप्राणहाणि: "करपाणहाणि 7. APS चक्रपाणि । 8. Pणनिया। 9.AP काललवरु। 10. B यदायित। ।।. 5 पई हऊ। 12. Aधाराथणाल : 13. DK दुणिओसि दुर्णिए । ---- --- . ---..
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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