________________
91.18.121 महाकइपुष्फतविरयउ महापुराणु
[ 225 घत्ता-पेच्छिवि दुव्वार कामएचसरणियरगइ। णं कुमुणिकुबुद्धि भग्गउ समरि खगाहिवइ ॥17॥
( 18 ) पवणुद्धयचिंधपसाहणेण
णासेवि जणणु सहुँ साहणेण। पायालवावि संपत्तु जाम बोल्लिङ लहुएं तणुएण' ताम। जोइप्पहेण सिलरोहणेण
तुहं मोहिउ दइवें मोहणेण। जहिं जहिं अम्हहिं कचड़ें णिहित्तु पप्फुल्लकमलदलविमलणेत्तु। तहि तहिं णीसरइ महाणुभाउ देविहिं पुजिज्जइ दिब्बकाउ। कि कहिं मि पुत्तु अहिलसइ माय को पावइ कामहु तणिय छाय। को' अण्णु सुसच्चसउच्चवंतु गंभीरु वीरू' गुणगणमहंतु। को' जाणइ किं अंबाइ वुत्तु मारावहुं पारद्धउ सुपुत्तु। महिलार होति मायाविणीउ ण मुणहिं पुरिसंतरु दुयिणीउ । कि ताय णियबिणिछंदु चरहि लहुं गपि कुमारहु विणउ करहि। 10 पडिवण्णउं पालहि चवहि सामु अणुणहि णियणंदणु देउ कामु।
इय णिसुणिवि चारुपबोल्लियाई ... पहुणयणई अंसुजलोल्लियाई। पत्ता -कापदेव के वाण-समूह की गति दुर देखकर विद्याधर राजा युद्ध के मैदान से इस प्रकार भाग गया, मानो खोटे साधु की कुबुद्धि हो।
हवा में उड़ती हुई पताका, प्रसाधन और सेना के साथ जब तक पिता पाताल-बावड़ी पर पहुँचता है, तब तक शिला पर आरोहण करनेवाले छोटे पुत्र ज्योतिष्प्रभ ने कहा-“हे पिता ! तुम दैवयोग से मोहन (शक्ति) से मोहित हो। जहाँ-जहाँ हम लोगों ने कपटपूर्ण ढंग से उसे रखा, खिले हुए कमलदल के समान विशालनेत्र वह महानुभाव बचकर निकल आया और देवियों ने उसके दिव्य शरीर की पूजा की। क्या कहीं पुत्र भो माता की इच्छा करता है ? काम के तन की छाया को कौन पा सकता है ? दूसरा कौन सत्य और शोचव्रत वाला है, जो गम्भीर, वीर और गुणगण से महान् हो ? कौन जानता है कि माता ने क्या कहा ? उसने पुत्र को परवाना शुरू करवा दिया। स्त्रियाँ माया से विनीत होती हैं, दुर्विनीत वे परपुरुष का भी विचार नहीं करतीं। हे पिता ! स्त्री के कपट पर क्यों विश्वास करते हो ? शीघ्र जाकर कुमार के प्रति विनय कीजिए। जो स्वीकार किया है उसका पालन करो, श्याम से कहो अपने पुत्र कामदेव से अननुय करो।" इन सुन्दर वचनों को सुनकर राजा की आँखें आँसुओं से गीली हो गयीं। वह वहाँ गया जहाँ श्रीकृष्ण का पुत्र था।
(18) 1. ABPS तणएण। 2. APS देवहिं। 3. AP को पहियलि अण्णु सुप्सच्चवतु । 4. ABPS धीरू । 5. AP को (p किं) जाणइ कि मायए (p माए) पवृत्त ( पन्तु)। 6. ABPS सपुत्तु ।