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महाकइपुण्फ यंतविरयउ महापुराणु
पत्ता- पितुरिनि एक जवि सुंदर बोसरइ । वाविहि पण्णत्ति तहु रूवें सई पसरइ ||16||
( 17 )
पणुण दि तेहिं बालु सिलवीदें छाइय वावि जाम ते तेण गायपासेण बद्ध णिक्खित्त अहोमुह सलिलरंधि शिवरायणविहरविणिवारएण जोइप्पण सा धरिय केम तहिं अवसरि परबलदुम्मण आसण्णु पत्तु तें भणिउ कामु तुझप्परि आयउ तुज्झ ताउ ता सिवि पटिभ मद्दणेण हव
राय हय गय चूरिय रहोह
[ 91.16.16
अप्पाणडु कोक्किउ पलयकालु । रुप्पिणितणुरुहु मणि कुइउ ताम | सुहिअवयारों के के ण खद्ध । सिल' उवरि मिहिय जाय तमधि | खगवइतणाएं लहुयारएण' । उप्पर णिवडंती मारि जेप।
हि एंतु पलोइउ वम्महेण । भो दिट्ठु जम्मणेहहु विरामु । 'भो मयरद्धय लइ ससरु" चाउ । देवें दामोयरणंदणेण । विच्छित्त महिधित्त जोह ।
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बत्ता - इस प्रकार दुष्टों की चेष्टा जानकर सुन्दर (कुमार स्वयं) हट जाता है और प्रज्ञप्ति-विद्या स्वयं उसके रूप में बावड़ी में प्रवेश करती है।
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उन्होंने छिपे हुए वालक को नहीं देखा। उन्होंने अपने लिए प्रलयकाल बुला लिया। जब वे शिलापीठों से बावड़ी को आच्छादित कर रहे थे, तब प्रद्युम्न अपने मन-ही-मन में कुपित हो उठा। उसने नागपाश से उन लोगों को बाँध लिया। सज्जन के साथ अपकार करने से कौन-कीन नहीं नष्ट हुए ? उसने मुख नीचा करके पानी के छेद में डाल दिया और ऊपर से चट्टान रख दी । तमान्धकार होने पर अपने स्वजनों के संकट का निवारण करनेवाले छोटे विद्याधरपुत्र ज्योतिप्रभ ने उस चट्टान को इस प्रकार धारण किया, जैसे आती हुई बीमारी ( महामारी) हो उस अवसर पर शत्रुबल का नाश करनेवाले कामदेव ने आकाश में आते हुए (कालसंवर विद्याधर ) को देखा। वह पास आया। उसने कामदेव से कहा- "अरे ! जन्मस्नेह का अन्त देख लिया। तुम्हारे ऊपर तुम्हारे तात आये हैं । हे कामदेव तीरों सहित अपना धनुष लो।" तब शत्रुवोद्धा का नाश करनेवाले देव दामोदर पुत्र ने क्रुद्ध होकर अश्व और गजों को जाहत कर नष्ट कर दिया । रथसमूह चूर-चूर हो गया। छत्र नष्ट हो गये और योद्धा धरती पर जा गिरे।
13. A पिसुगिउ K पिसुणिगउ । 11. S जाणवि ।
( 17 ) 1. B तणरुहु: S तरुछु। 2. P कुबिच 3. S वासेण 4. Pomits this fool. 5. A विहिब। B. P "तपुएं। 7. B सहुवारएण 8. PS है।
9. B इंतु 10. B समरु 11 A हय हय गय गय ।