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________________ 234 ] मलाकइपुप्फयंतविरघउ महापुराणु [92.3.10 10 सिसुदुब्बिलसियाई कयरायहु हरिसु जणति अवस' णियतायहु। एत्यंतरि अणंगु पयडंगउ होइवि गुरुयणि" विणयवसं गउ। पडिक चरणजुबलइ नहुनहण करकेसिपायवदबदहणहु । तेण वि सो भुयदंडहिं!' मोडेउ आसीवाउ देवि अवडेिउ। घत्ता-कंदप्पु कणयणिहु केसबहु अंगालीणउ मणहरु। __णं अंजणमहिहरमेहलहि दीसइ संझाजलहरु ॥3॥ हरिणा मयणु चडाविउ मयगलि णं दियहेण भाणु उययाचलि। उवसमेण परमत्थविमाणइ णं अरहंतु देउ गुणठाणइ। बंदिविंदउग्योसियभद्दे पुरि पइसारिउ जयजयसदें। किउ अहिसेउ सरह सुरमहियहु भाणुवइकुमारिहि सहियहु। सो ज्जि कुलक्कमि' जेठु पयासिउ पडिवक्खहु उव्वेउ पविलसिउ। लुय रुप्पिणीइ गपि णीलुज्जल सच्चहामदेविहि सिरि कोंतल । भवियबाउं पच्छण्णु "पदरिसिउं अण्णहि वासरि केण वि भासिउँ। गोविंदह करिकरदीहरकत होही को वि पुत्तु कप्पामरु। अवश्य हर्ष उत्पन्न करती हैं। इस बीच कामदेव प्रद्युम्न प्रकटशरीर होकर गुरुजनों के सम्मुख विनीत हो गया। वह कंस और केशीरूपी वृक्षों के लिए दावानल के समान श्रीकृष्ण के चरणों में गिर पड़ा। उन्होंने भी उसे अपने बाहुदण्डों से अलंकृत किया और आशीर्वाद देकर उसका आलिंगन किया। पत्ता-केशव (श्रीकृष्ण) के शरीर में लीन, स्वर्ण के समान सुन्दर कामदेव ऐसा लग रहा था, मानो अंजन महीधर की मेखला पर सान्ध्यमेघ दिखाई दे रहा हो। श्रीकृष्ण ने कामदेव (प्रद्युम्न) को, जिसका मद झर रहा है ऐसे महागज पर बैठाया, मानो दिन ने सूर्य को उदयाचल पर चढ़ाया हो। मानो उपशम भाव से अरहन्त देव मोक्ष या गुणस्थान में चढ़ गये हों। वन्दीजनों के द्वारा उद्घोषित मंगल और जय-जय शब्द के साथ उसे नगर में प्रवेश दिया गया तथा भानुकुमार के लिए उपदिष्ट कमारी के साथ, देवों द्वारा पूज्य कामदेव का अभिषेक किया गया। उसी (प्रद्युम्न) को कुलपरम्परा में बड़ा घोषित किया गया। इससे प्रतिपक्ष का उद्वेग बढ़ गया। रुक्मिणी ने जाकर सत्यभामा देवी के सिर के काले उजले केश काट लिये। दूसरे दिन प्रच्छन्न होनहार को प्रदर्शित करते हुए किसी नैमित्तिक ने कहा-कोई देव गोविन्द का हाथी की सैंड़ के समान दीर्घ हाथोंवाला पुत्र होगा। यह सुनकर भानुकुमार की माँ सत्यभामा - - - 9.P अवसु। 10. गुरुपण' S भुवटामि। (4) 1. B उवयाचलि। 2. 5 जरहंतदेर। 3. B "वंद । 4. Smits this fnot. 5. A पयसारिख । 6.5 भाणु वि दृष्ट: । भाणुया कुमारिहि । 7. कुलकम । R. APणीलुप्पल । 9. APS सच्चभाम" | 10. BS वि दरिसिहं ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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