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________________ 222 ] [ 91.15.5 महाकइपुप्फयंतविरयउ महापुराणु सुथिरतें णिज्जियमंदरासु तं विलसिउं पेच्छिवि सुंदरासु। देवयइ विइण्णउ13 विजयघोसु जलयस परवाहिणिहिययसोसु' । अण्णेक्कु पिसुणपाढीणजालु। ढोइयउ महाजालु वि बिसालु। सज्जणहु वि दुजणु कुडिलचित्तु । पुणु कालणामगुहमुहि णिहित्तु । रयणीयरेण सूहउ. पसत्थ. . . . . पणदेवि महाकालेण तेत्यु। विससंदणु भडकडमद्दणासु तहु दिण्णाजु केसवणंदणासु। पुणु वम्महेण दिट्ठङ खयालि पन्भट्ठचे? रुक्खंतरालि। विज्जाहरू विज्जाबलहरेण कीलिउ केण वि विज्जाहरेण। तहु वसुणदइ अवलोइयाइ णियकरयलसयदलढोइयाइ। णरदेहसोक्खसंजोयणीइ गुलियाई। णिबंधणमोयणीइ । मेल्लाविउ भाविउ भाउ ताउ उप्पण्णउ तासु सणेहभाउ। हरितणयह दरपहसियमुहेण23 दिण्णाउ तिण्णि विज्जाउ तेण। उवयारहु पडिउबयारु रइज भणु को ण सुयणसंगेण लइछ। घत्ता--दुज्जणबयणेण परिववियअहिमाणमउ । सहसाणणसप्पविवरि पइट्सउ जयविजउ ॥15॥ को सहन करनेवाले तथा शत्रुओं के रथों को चूर-चूर करनेवाले भुजदण्डों से वेग से उद्भट, तीव्र, असुन्दर सूकर के कण्ठ को श्रीकृष्ण के पुत्र (प्रद्युम्न) ने मोड़ दिया। अपने शौर्य से मन्दराचल को जीतनेवाले कुमार की उस चेष्टा को देखकर देवी ने शत्रु-सेना के हृदय का शोषण करनेवाला विजयघोष नाम का शंख दिया, तथा अन्य एक दुष्ट मत्स्यों के लिए जाल के समान विशाल महाजाल दिया। सज्जन के लिए भी दुर्जन कुटिलचित्त होता है। फिर उसे 'काल' नामक गुहा के मुख में डाल दिया। वहाँ महाकाल नामक रजनीचर ने उस सन्दर प्रशस्त को प्रणाम कर, योद्धाओं की सेना को चकनाचर कर देनेवाले केशवपुत्र को वषम नाम का स्य दिया। फिर उस कामदेव ने आकाश में, दो वृक्षों के अन्तराल में प्रभ्रष्ट चेष हरण करनेवाले किसी विद्याधर के द्वारा कीलित किये गये विद्याधर को देखा। कृष्णपुत्र के द्वारा देखी गयी, अपने करतलरूपी शतदल से उठायी गयी, मनुष्य-देह में सुख का संयोजन करनेवाली, बन्धन से मुक्त करनेवाली विद्याधर की दी हुई गुटिका से (कृष्ण-पुत्र ने) उसे उन्मुक्त कर दिया। वह उसे पिता और माता के समान नगा। उसका स्नेह भाव हो गया। किंचित् स्मित मुख से उसने कृष्ण के पुत्र के लिए तीन विद्याएँ दीं। इस प्रकार उपकार करनेवाले का प्रत्युकार किया। बताओ ! सुजन को संगति से क्या नहीं मिलता ? ___ घत्ता-तव दुर्जन के बचनों से बढ़ रहा है अभिमान जिसका, ऐसा जयों का भी विजेता वह कुमार सहस्रानन सर्पगुफा में प्रवेश कर गया। 10. BP "मंदिरासु। 11.5 पेच्छिउ ।।2.5 देवए। 13. B विदिष्णउ । 14. B°हिपह। 15. B गुहमुह | 16. 5 विसदसणु। 17.AP"फडवणासु । 18. दिष्णिउ। 19. APS "सोक्खु । १७.४ अंगुलिए। 21. A लाविउ भाउभाउ। 22. A सिणेह। 29. A दरिसिमसियमुहेण दरवियसियमुझेण।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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